पश्चिम सिंहभूम, 17 अगस्त ।  पश्चिम सिंहभूम जिले के घने सारंडा जंगल में स्थित टाटा स्टील की विजय-टू आयरन ओर माइंस की लीज रविवार से समाप्त हो गई है। लीज समाप्त होने के साथ ही पूरे क्षेत्र में बेचैनी, डर और अनिश्चितता का माहौल गहराता जा रहा है।

कंपनी प्रबंधन से लेकर खदान में काम करने वाले मजदूर, वाहन मालिक, चालक, हेल्पर, वेंडर और आसपास के दुकानदार सभी की चिंता बढ़ गई है। अनुमान है कि सीधे तौर पर डेढ़ हजार से अधिक लोगों का रोजगार इस खदान से जुड़ा है जबकि परोक्ष रूप से यह संख्या चार से पांच हजार तक पहुंचती है।

यदि खदान संचालन ठप हुआ तो यह केवल एक उद्योग बंद होने की घटना नहीं होगी बल्कि पूरे सारंडा और लोहांचल क्षेत्र के लिए आर्थिक आपदा साबित होगी। खदान से जुड़े करीब छह सौ छोटे-बड़े वाहन इस समय माल ढुलाई में लगे हैं जिनमें अधिकांश बैंक लोन पर खरीदे गए हैं।

वाहन मालिकों का कहना है कि अगर खदान बंद हुई तो गाड़ियां खड़ी हो जाएंगी और बैंक सीधे जब्ती की कार्रवाई पर उतर आएंगे। ट्रक चालकों, हेल्परों और मैकेनिकों के साथ-साथ उनसे जुड़े टायर-पार्ट्स की दुकानें, पेट्रोल पंप, ढाबे और होटल भी प्रभावित होंगे।

विजय-टू खदान में टाटा स्टील के साथ कई वेंडर कंपनियां काम करती हैं। इनमें बीएस माइनिंग के करीब तीन सौ, क्रेशर के डेढ़ सौ, श्री साईं कंपनी के डेढ़ सौ और अन्य वेंडरों के कुल आठ सौ से अधिक मजदूर शामिल हैं। ये सभी संविदा पर काम करते हैं और उनके लिए यही रोज़गार जीवन-निर्वाह का एकमात्र साधन है। मजदूरों का कहना है कि वे वर्षों से इसी काम पर निर्भर हैं। अगर खदान बंद हुई तो उन्हें गांव लौटकर खेती करनी पड़ेगी, लेकिन खेती से परिवार का पेट भरना मुश्किल है।

भले ही टाटा स्टील के स्थाई कर्मचारी अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं, परंतु उन्हें भी आशंका है कि यदि लीज नवीनीकरण में देरी हुई तो उत्पादन पर असर पड़ेगा और उसके प्रभाव से उनका भविष्य भी प्रभावित होगा। खदान के बंद होने से रोजगार खत्म होने के साथ-साथ पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था डगमगा जाएगी।

बैंक लोन की ईएमआई रुकने पर जब्ती और रिकवरी की कार्रवाई तेज होगी, छोटे कारोबारियों को दुकानें बंद करनी पड़ेंगी, स्थानीय बाजारों में गिरावट आएगी, किराए के मकानों की मांग घटेगी और शिक्षा पर भी असर पड़ेगा। ग्रामीण आशंका जता रहे हैं कि बेरोजगारी बढ़ने पर लोग मजबूरी में लकड़ी तस्करी, खनिज चोरी और अपराध की ओर मुड़ सकते हैं। ग्राम मुंडा कानूराम देवगम का कहना है कि जब पेट खाली होता है तो आदमी कोई भी काम कर लेता है। बेरोजगारी सिर्फ जेब खाली नहीं करती बल्कि जंगल और समाज दोनों को तबाह कर देती है।