रामगढ़, 16 अगस्त  ।झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और दिशोम गुरु के नाम से विख्यात स्वर्गीय शिबू सोरेन के संस्कार भोज में शनिवार को जनसैलाब उमड़ पड़ा। रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में आयोजित इस कार्यक्रम में देशभर से लोग पहुंचे। आदिवासी समाज समेत विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने दिशोम गुरु को भावभीनी श्रद्धांजलि दी।

गुरुजी की सादगी और सरलता लोगों को नेमरा खींच लाई। यात्री वाहनों, निजी गाड़ियों की छतों पर बैठकर और पैदल चलकर भी हजारों लोग अंतिम जोहार करने उनके पैतृक गांव पहुंचे। आम नागरिकों के लिए बड़े पैमाने पर भोजन और अन्य सुविधाओं का प्रबंध किया गया था। श्रद्धालु सबसे पहले गुरुजी की समाधि स्थल पर नमन करते और उस मिट्टी को स्पर्श करते, जहां से उन्होंने आदिवासी समाज की आज़ादी और अधिकारों की लड़ाई शुरू की थी।

पुत्र धर्म पर खरे उतरे हेमंत सोरेन

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने संस्कार भोज की संपूर्ण व्यवस्था की निगरानी करते हुए पुत्र धर्म का उदाहरण प्रस्तुत किया। चार अगस्त को पिता शिबू सोरेन के निधन और पांच अगस्त को अंतिम संस्कार के बाद उन्होंने परंपरागत सभी विधियां पैतृक गांव में पूरी कीं। साथ ही, उन्होंने राजधर्म और शासन की जिम्मेदारियों को भी नहीं छोड़ा।

आदिवासी समाज की भावनाएं

कार्यक्रम में आदिवासी समाज के लाखों लोग जुटे। आंदोलन और संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कई बुजुर्ग भावुक हो उठे। हर कोई गुरुजी को अंतिम जोहार कह रहा था और उनके योगदान को नमन कर रहा था।

नेताओं और गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति

इस मौके पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ, राज्यपाल संतोष गंगवार, योग गुरु बाबा रामदेव, तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवन्त रेड्डी, सांसद पप्पू यादव समेत अनेक दिग्गज नेताओं ने श्रद्धा सुमन अर्पित किए। उन्होंने कहा कि शिबू सोरेन धन्य थे, जिन्होंने आदिवासी समाज को नई दिशा दी। उपस्थित नेताओं ने शिबू सोरेन की पत्नी रूपी सोरेन से आशीर्वाद भी लिया और उनके संघर्षों को नमन किया।

25 किलोमीटर लंबा जाम

गुरुजी को श्रद्धांजलि देने आने वालों की भीड़ इतनी विशाल थी कि गोला से नेमरा तक करीब 25 किलोमीटर लंबा जाम लग गया। कई लोग घंटों तक कतार में फंसे रहे, फिर भी बिना श्रद्धांजलि दिए वापस नहीं लौटे। कुछ स्थानीय लोग तो जंगलों और उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर पैदल ही नेमरा पहुंचे।