
राजनीतिक संरक्षण में अवैध निर्माण, वर्षों से जारी खेल
हुगली, 11 अगस्त । हुगली जिले के उत्तरपाड़ा से मोगरा तक फैले औद्योगिक इलाके की तस्वीर अब पूरी तरह बदल चुकी है। कभी यह जिला पश्चिम बंगाल के औद्योगिक हृदय स्थली के रूप में पहचाना जाता था। फैक्ट्रियों की मशीनें बंद हैं, धुआं उड़ाते चिमनियों की जगह अब बहुमंज़िली इमारतें खड़ी हैं, और इस बदलाव के पीछे है भू-माफियाओं और राजनीतिक संरक्षण का गठजोड़।
बीते दशकों की पृष्ठभूमि पर नज़र डालें तो 1960 से 80 के बीच दिल्ली रोड के किनारे उत्तरपाड़ा, कोन्नगर, डानकुनी, रिषड़ा, श्रीरामपुर और बैद्यबाटी में फैली फैक्ट्रियां हज़ारों मजदूरों के लिए रोज़गार का प्रमुख स्रोत थीं। लेकिन 1990 से 2005 के बीच वैश्विक प्रतिस्पर्धा, प्रबंधन विवाद और लगातार मज़दूर आंदोलनों ने इन उद्योगों को कमजोर कर दिया और कई इकाइयां एक के बाद एक बंद होती चली गईं। इसके बाद 2005 के बाद से खाली पड़ी औद्योगिक ज़मीन पर माफिया की नज़र पड़ी और चोरी-छिपे इन ज़मीनों का चरित्र बदलने का सिलसिला शुरू हो गया।
कब्ज़ा करने का तरीका भी सुनियोजित था। सबसे पहले बंद फैक्ट्रियों से मशीनें और निर्माण सामग्री रातों-रात गायब की जाती थी। इसके बाद फैक्ट्री की दीवारें तोड़कर घुसपैठ की जाती और भूमि अधिकार विभाग में मिलीभगत से ज़मीन की श्रेणी बदल दी जाती। जैसे ही ज़ोनिंग बदली जाती, तुरंत बहुमंजिली इमारत का निर्माण शुरू हो जाता और फिर फ्लैट की बिक्री तेज़ी से शुरू हो जाती।
इस पूरे खेल में कुछ कुख्यात चेहरों की भूमिका सामने आती रही है। शुरुआत में गैंगस्टर भोलानाथ दास उर्फ ‘बाघा’ का दबदबा था, लेकिन बाद में श्यामल दास उर्फ ‘हुब्बा’ ने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल कर बाघा को पीछे छोड़ दिया और पूरे हुगली औद्योगिक क्षेत्र पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। हुब्बा ने अवैध शराब, जुआ और सट्टा कारोबार से मोटी कमाई की और अपने गिरोह को मजबूत किया। दबदबा बनाए रखने के लिए उसने कई बार हत्या जैसे अपराधों का सहारा भी लिया। राजनीतिक संरक्षण मिलने से उसका नेटवर्क और फैल गया। हालांकि 2011 में ज़मीन विवाद में हुब्बा की हत्या हो गई। इस हत्या के मामले में रमेश महतो और नेपु गिरि का नाम सामने आया और दोनों गिरफ्तार हुए। जेल से छूटने के बाद रमेश महतो ने निर्माण सामग्री आपूर्ति और प्रॉपर्टी फंडिंग के ज़रिये नेटवर्क को और बढ़ा लिया।
पिछले 20 वर्षों में घटनाओं की एक स्पष्ट समय-रेखा दिखती है। 2006 से 2010 के बीच बंद फैक्ट्रियों की ज़मीनों पर अवैध कब्ज़ों में अचानक वृद्धि हुई। वर्ष 2011 में हुब्बा की हत्या के बाद रमेश महतो के नेतृत्व में नए सिरे से अवैध निर्माण का दौर शुरू हो गया। वर्ष 2013 से 2019 के बीच राजनीतिक संरक्षण के चलते कब्ज़ा और तेज़ हुआ और 2020 से 2025 के बीच दिल्ली रोड किनारे बड़ी संख्या में औद्योगिक भूखंडों पर बहुमंज़िला इमारतें खड़ी हो चुकी हैं।
अनुमान के मुताबिक, इस समय हुगली में 50 से अधिक फैक्ट्रियां बंद हैं, 40 प्रतिशत से ज़्यादा औद्योगिक भूखंडों का अवैध रूपांतरण हो चुका है और पिछले 15 सालों में ज़मीन विवाद से जुड़े 200 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं। इनमें से करीब 60 प्रतिशत मामले राजनीतिक रूप से संवेदनशील माने जाते हैं।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है कि तकनीकी और कानूनी सख्ती के बावजूद राजनीतिक पैंतरेबाज़ी और अधिकारियों की मिलीभगत से माफिया सिंडिकेट पर पूरी तरह रोक लगाना बेहद मुश्किल है। स्थानीय लोग आशंका जता रहे हैं कि अगर मौजूदा हालात नहीं बदले, तो हुगली का यह इलाका पूरी तरह अवैध निर्माण के जंगल में बदल जाएगा।
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