
गृहिणियां किस तरह मैनेज करती हैं राखी पर भाई-भाई के यहां जाना और तुरंत लौटकर आना, ताकि घर पर आने वाली ननद का भी स्वागत कर सकें
-सास बनने के बाद भी अपनी ननद के लिए ताउम्र समय प्रबंधन की पालना पर्व का अनिवार्य हिस्सा है
-कौशल मूंदड़ा-
उदयपुर, 11 अगस्त। ‘दीदी आप कितने बजे आओगे, उस हिसाब से मैं पीहर हो आऊं’।
जी हां, यह एक सामान्य लेकिन महत्वपूर्ण सवाल था जो रक्षाबंधन की पूर्व संध्या से रक्षाबंधन के दिन शनिवार को सुबह-सुबह हर घर में गूंज रहा था। ननद और भाभी के इस सवाल और इस सवाल के बाद आने वाला जवाब रक्षाबंधन पर्व से समय प्रबंधन सीखने का महत्वपूर्ण अध्याय है। प्रबंधन के विद्यार्थी और शोधार्थी भी चाहें तो इस पर्व पर ननद-भाभी के समय प्रबंधन से काफी सीख सकते हैं।
देखा जाए तो राखी पर ननद-भाभी का समय प्रबंधन कोई आज का नहीं है, यह सनातन काल में तब से चला आ रहा है जब से राखी का पर्व मनाया जा रहा है। ननद और भाभी उम्र के पड़ाव के साथ सास की भूमिका में भी आ जाए, तब भी राखी वाले दिन तो दोनों को आपस में बात करके समय प्रबंधन करना ही पड़ता है। और इस प्रबंधन का आरंभ बेटी के हाथ पीले होते ही शुरू हो जाता है। बेटी के हाथ पीले होते ही वह कहीं भाभी हो जाती है तो उसे ननद मिल जाती है और यदि बेटी भी किसी की ननद है तो उसे यही समय संयोजन विवाहोपरांत अपनी भाभी के साथ बिठाना होता है। कुल मिलाकर बेटी ही बहन है, बेटी ही ननद भी है और बेटी ही किसी की भाभी भी। वह इस त्योहार को केवल निभाती नहीं, जीती है। उसकी आंखों में भाई के लिए प्यार, दिल में परिवार के लिए सम्मान और व्यवहार में समय का संतुलन होता है। हर महिला जो इन सभी रूपों में खुद को समर्पित करती है, वह संस्कृति की सच्ची वाहक है। उसकी यही विशेषता रक्षाबंधन को एक रस्म नहीं, बल्कि जीवन का उत्सव बनाती है।
कई परिवारों में स्थापित हो जाता है समय प्रबंधन
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-कई परिवार ऐसे हैं जहां धीरे-धीरे तीन-चार सालों में राखी पर समय प्रबंधन फिक्स हो जाता है। हिरण मगरी निवासी भावना जैन बताती हैं कि उनके घर में महिलाएं इस दिन विशेष टाइम मैनेजमेंट करती हैं, ताकि सास, बहू और ननद एक साथ पर्व मना सकें। उनकी सास राखी से एक-दो दिन पहले अपने भाई के घर जाकर राखी बांधती हैं और त्योहार के दिन घर लौट आती हैं। ननद राखी के दिन सुबह ही आकर भाइयों को राखी बांधती हैं और सब मिलकर खुशियां बांटते हैं। इसके बाद वह स्वयं अपने भाई को राखी बांधने सलूम्बर जाती है। शादी करके परिवार में आने के बाद धीरे-धीरे यह समय प्रबंधन अपने आप स्थापित हो गया। विशेष परिस्थितियों में यह क्रम कभी-कभार ऊपर-नीचे हो जाता है।
घर में बड़े हैं तो समर्पण भी करना होता है
-हाथीपोल खेजड़ी वाली पोल में रहने वाली प्रेमलता लोहार बतातीं हैं कि चूंकि वे घर में बड़ी बहू हैं तो उनका दायित्व बनता है कि पहले सभी का ध्यान रखे फिर अपनी सोचे। इसी समर्पित भावना के साथ उनका राखी का क्रम फिक्स है कि पहले ननदें आती हैं, फिर वे अपने भाइयों को राखी बांधने हिरण मगरी-सेक्टर-4 जाती हैं। इसमें करीब-करीब शाम हो जाती है और वहां पहुंचते ही सुनने को मिलता है, लो अब समय मिला आपको। तब वे भी कहती हैं, कि बड़ों को सभी का ध्यान रखना होता है, तुम भी बड़े होने की भूमिका में आओगे तो समझ जाओगे। तो जवाब में यह भी आ ही जाता है, छोटे रहने में ज्यादा फायदा है। सब हंसते हैं, माहौल खुशनुमा हो जाता है।
मुझे ननद बाईसा का रहता है इंतजार
-धानमंडी निवासी सुनीता माहेश्वरी कहती हैं कि उनके सगा भाई भले नहीं है, लेकिन उदयपुर में ही माली कॉलोनी में निवासरत दीदी के यहां से बुलावा आता है। ऐसे में उन्हें ननद बाईसा और मौसी सास का इंतजार रहता है और उनसे समय की सेटिंग करके ही दीदी के यहां जाने का समय फिक्स किया जाता है। अधिकतर ननद बाईसा शाहपुरा से और मौसी सास भीलवाड़ा से वहां अपने घर में राखी का त्यौहार मनाकर शाम तक उदयपुर पहुंचते हैं, इसलिए दीदी के यहां दोपहर में जाने का कार्यक्रम तय हो जाता है। इस बीच, सासू मां भी भाइयों को राखी बांध आती हैं। लम्बे समय से यही समय प्रबंधन स्थायी है, परिस्थितिवश कुछ ऊपर-नीचे हो जाए तो आपस में चर्चा करके प्रबंधन कर लेती हूं।
यहां देवरानी-जेठानी ने किया टाइम मैनेजमेंट
-शहर के बोहरा गणेश कॉलोनी निवासी मंजू वर्मा भी बड़ी बहू हैं। मंजू ने बताया कि वे, मंझली बहू निर्मला और छोटी बहू नेहा कुमावत हर बार राखी के लिए टाइम मैनेजमेंट करती हैं। इस बार उन्होंने अपने भाइयों को पहले राखी पहुंचाई। इससे पहले वे अपने भाइयों को खुद राखी बांधने जाती थीं। इस बार मंझली बहू निर्मला कुमावत दो साल बाद भाइयों के संग राखी मनाने बांसवाड़ा गई। घर में पहले बच्चों ने सुबह के समय राखी बांधने-बंधवाने की रस्म पूरी की। दोपहर में बड़ी ननद चंदा राखी बांधने आई। छोटी ननद ममता कुमावत चौमू से नहीं आ सकीं क्योंकि उनकी ससुराल में ज्यादा व्यस्तता हो गई। ससुराल में ममता की ननद राखी बांधने आईं, ऐसे में वे उदयपुर के लिए नहीं निकल पाईं। घर में दो चरण पूर्ण होने के बाद सासू मां गीता देवी अपने भाई सुरेश कुमावत के यहां जयश्री कॉलोनी राखी बांधने पहुंचीं।