-केशव भट्टड़

द्वितीय विश्व युद्ध मानव इतिहास का सबसे विनाशकारी युद्ध था, जिसके परिणामों ने विश्व को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, और नैतिक रूप से गहराई से प्रभावित किया।

 

लगभग 7-8.5 करोड़ लोग मारे गए, जिसमें सैनिक और नागरिक दोनों शामिल थे। इसमें 2.1-2.5 करोड़ सैनिक और 5-6 करोड़ नागरिकों की मृत्यु हुई। सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहे सोवियत संघ में लगभग 2.7 करोड़, चीन में लगभग 2 करोड़ लोग मारे गए और पोलैंड की तो 17% आबादी ही साफ हो गयी।

 

नाज़ी जर्मनी ने 60 लाख यहूदियों और लाखों अन्य अल्पसंख्यकों (रोमा, अशक्त, समलैंगिक) को व्यवस्थित रूप से मार डाला। यह मानवता के खिलाफ सबसे भयानक अपराधों में से एक था। मानव सभ्यता लांछित हुई, कलंकित हुई। होलोकॉस्ट और अन्य अत्याचारों ने मानवता के नैतिक आधार को हिला दिया।

 

1945 में जापान के हिरोशिमा (1.4 लाख मृत) और नागासाकी (74,000 मृत) पर अमेरिका द्वारा किए गए परमाणु हमलों ने अभूतपूर्व विनाश दिखाया। यूरोप और एशिया के कई शहर (जैसे ड्रेसडेन, टोक्यो, लंदन) पूरी तरह नष्ट हो गए। जर्मनी और जापान की अर्थव्यवस्थाएँ चरमरा गईं। युद्ध के कारण वैश्विक व्यापार और उत्पादन ठप हो गया, जिससे भुखमरी और गरीबी बढ़ी। युद्ध की लागत  उस समय लगभग $1.5 ट्रिलियन थी, जिसने कई देशों को कर्ज में डुबो दिया। लाखों लोग बेघर हुए, और शरणार्थी संकट उत्पन्न हुआ। परिवार बिछड़ गए, और सामाजिक संरचनाएँ टूट गईं।

 

युद्ध के दृश्यों और अत्याचारों ने सामूहिक मनोवैज्ञानिक आघात (PTSD) को जन्म दिया। महिलाओं और बच्चों पर विशेष रूप से बुरा प्रभाव पड़ा, क्योंकि वे हिंसा, भुखमरी, और यौन शोषण का सबसे ज्यादा शिकार बने।

 

सोवियत संघ और अमेरिका महाशक्तियों के रूप में उभरे। बाद में इन युद्ध-सहयोगियों के बीच वैचारिक टकराव ने शीत युद्ध को जन्म दिया, जिसने विश्व को दशकों तक विभाजित रखा। दो ध्रुवीय राजनय ने नए तनावों को जन्म दिया। परमाणु हथियारों का विकास एक स्थायी खतरा बन गया। युद्ध के बाद रडार, जेट इंजन, और कंप्यूटर जैसी तकनीकों का जन्म हुआ, लेकिन इनके सैन्य उपयोग ने भविष्य के युद्धों को ज्यादा खतरनाक बनाने की संभावना को बल दे दिया ।

 

त्रासदी खत्म नही हुई, बल्कि मानवता के लिए खतरा बढ़ गया, लगातार बढ़ता गया। तकनीक का उपयोग जीवन को सुंदर बनाने के लिए होना था, हुआ भी, लेकिन साथ-साथ इसके बड़े दुरुपयोग भी हुए।

 

संयुक्त राष्ट्र (1945) का गठन हुआ ताकि भविष्य में युद्ध रोके जा सकें। इसका चार्टर शांति, मानवाधिकार, और सहयोग को बढ़ावा देता है। विडंबना देखिए कि इस चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले देशों की सनक ने नए महायुद्ध के दर पर दुनिया को ला खड़ा किया है। तीसरे महायुद्ध की पदचाप सनै-सनै नज़दीक आती सुनाई पड़ने लगी है।

 

द्वितीय विश्वयुद्ध का सबसे बड़ा सबक होना चाहिए था कि अंतरराष्ट्रीय राजनय आपसी विभेदों के राजनयिक समाधानों के लिए संवाद पर ध्यान दे और क्षेत्रीय तनावों को वैश्विक मंचों पर सुलझाने के लिए संवाद की संस्कृति विकसित करे। लेकिन यह सबक मूर्ख राजनीतिबाजों ने नहीं सीखा।

 

नाज़ीवाद और फासीवाद जैसी विचारधाराएँ, जो नफरत और असहिष्णुता पर आधारित थीं, ने लाखों लोगों की जान लील ली थी। सबक होना चाहिए था कि सभ्यता को कलंकित करने वाली इन विचारधाराओं को जमींदोज कर दिया जाय। लेकिन मूर्ख राजनीतिबाजों ने इसे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति का हथियार बना लिया।

 

आज भी दूसरे महायुद्ध से सबक लेते हुए नस्लवाद, धार्मिक कट्टरता, और अतिवादी विचारधाराओं का विरोध करना जरूरी है। लेकिन मूर्ख राजनीतिबाज युद्ध की लिए ताल ठोक रहें हैं और एकता के अभाव में पंगु बना सभ्य समाज इस असभ्यता को मूक होकर देखने को विवश है। सिवाय कम्युनिस्टों के युद्ध का विरोध करनेवाले कहीं नहीं दिख रहे हैं। तो दूसरे महायुद्ध से दुनिया ने क्या सीखा ? सभ्यता के नाम पर ज्यादा विकसित होकर भी दुनिया आदिम ही रही।

 

नूरेमबर्ग और टोक्यो ट्रायल्स (1945-46) में महायुद्ध के अपराधियों को सजा दी गई थी, जिसने अंतरराष्ट्रीय कानून को मज़बूत किया। सीधा सबक था कि युद्ध अपराधों और नरसंहारों की जवाबदेही तय करने के लिए अंतरराष्ट्रीय न्याय व्यवस्था (जैसे ICC) को मज़बूत करना जरूरी है। क्या हुआ ? जिन पर तकिया था, वे पत्ते ही हवा करने लगे !

 

हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमलों ने दिखाया कि ऐसे हथियार मानवता के लिए खतरा हैं, अभिशाप है। सीधा सबक था कि परमाणु निरस्त्रीकरण और हथियारों के प्रसार को रोकने (NPT) के लिए जी-जान से वैश्विक प्रयास जरूरी हैं। हुआ क्या ? आज गर्व से बताते हैं, चर्चा करते हैं कि किस देश के पास कितने न्यूक्लियर हथियार हैं! किसके पास खुल्लमखुल्ला है, किसने चोरी से बनाये हैं, कितनों ने गुपचुप विकसित कर लिए हैं और कितनो ने अपनी जनता का खून निचोड़कर खरीद लिए हैं या खुद को गिरवी रखकर खैरात में ले लिए हैं ! मूर्ख राजनय बेशर्म हो चुका है! इस अंतरराष्ट्रीय बेशर्मी को दुनिया के सभ्य लोग चुपचाप झेल रहे हैं।

 

पहले विश्व युद्ध के बाद जर्मनी पर थोपी गई कठोर और अपमानजनक संधियाँ ( जैसे वारसा की संधि) द्वितीय विश्व युद्ध का एक कारण बनीं। इसके विपरीत, युद्ध के बाद मार्शल प्लान ने यूरोप के पुनर्निर्माण में मदद की।

सीधा और स्पष्ट सबक था कि आर्थिक असमानता और गरीबी को दूर करना युद्ध की जड़ों को खत्म करने के लिए सबसे जरूरी है, यही एकमात्र रास्ता है। क्या सीखा ? मूर्ख राजनीतिबाजों ने व्यवसायियों और सरकारों के गठजोड़ को अपनी राजनीति चमकाने का जरिया बना लिया। आर्थिक असमानता और गरीबी दिन पर दिन बढ़ती गयी। और इससे ध्यान भटकाने के लिए निर्दोष धर्म को, जाति को, भाषा को, क्षेत्र को – जहां जैसे काम आए-  हथियार बना लिया गया।

होलोकॉस्ट ने मानवाधिकारों की रक्षा की आवश्यकता को उजागर किया, जिसके परिणामस्वरूप 1948 में यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (UDHR) अपनाया गया। सीधा सबक था कि सभी लोगों के लिए गरिमा, स्वतंत्रता, और समानता सुनिश्चित करना वैश्विक शांति की नींव है। क्या हुआ ? अभिव्यक्ति की स्वत़ंत्रता  पर आघात किया जाने लगा। सरकार की नीतियों का विरोध देशद्रोह हो गया। विपक्ष को खत्म करने के षड़यंत्रों को महिमामंडित किया जाने लगा। सरकारों ने विरोध को शत्रुता मान लिया! छोटे और अल्पकालिक लाभ के लिए दुनिया को, सभ्यता को, पूरी मनुष्यता को, खतरे के मुंह में ढकेल दिया गया।

 

महायुद्ध ने दिखाया कि सैन्य शक्ति का असंतुलन और आक्रामकता युद्ध को जन्म देती है। सीधा सबक था कि सैन्य शक्ति का उपयोग संयम और रक्षा के लिए होना चाहिए, न कि आधिपत्य के लिए। हुआ क्या । जिसकी लाठी उसकी भैंस। क्या यही सभ्यता है ? तो फिर पशुता क्या है ?

 

आज के समय में, रूस-यूक्रेन युद्ध, इज़रायल-ईरान तनाव, और चीन-ताइवान विवाद जैसे मुद्दे तीसरे विश्व युद्ध की आशंकाओं को जन्म दे रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के सबक हमें याद दिलाते हैं कि सभ्य नेतृत्व गुटनिरपेक्ष नीति अपना कर तनाव कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। नई तकनीकों के कारण युद्ध और भी विनाशकारी हो सकता है, इसलिए हथियार नियंत्रण जरूरी है। जनता को युद्ध के परिणामों और शांति के महत्व के बारे में शिक्षित करना जरूरी है। शिक्षा और जागरूकता इस वैश्विक असभ्यता और फूहड़ता के खिलाफ सबसे बड़े हथियार हैं।

 

द्वितीय विश्व युद्ध ने मानवता को अभूतपूर्व मर्मान्तक त्रासदी दी, जिसमें करोड़ों मौतें, आर्थिक तबाही, और नैतिक पतन शामिल थे। इसके परिणामों ने विश्व को संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार, और शांति के लिए नए ढांचे दिए। सबक भी दिए—जो आज भी सतर्क रहने और शांति के लिए काम करने की प्रेरणा देते हैं। यदि दुनिया भर में इन सबकों लागू करें, तो भविष्य में ऐसी त्रासदियों से सुरक्षित रहा जा सकता है।

 

सकारात्मक सोचें, नित नवनिर्माण करें, जिंदगी को बेहतर और खूबसूरत बनाये। बेहतर  जीवन के लिए आवाज उठाएं। युद्ध नहीं, शांति के लिए आवाज उठाएं। बगैर भटके जीवन के मुख्य मुद्दों पर फोकस रखें। दुनिया की हर आम मानव इकाई का यही लक्ष्य हो।

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