मोबाइल न मिलने से लेकर परीक्षा में असफलता तक, छोटी-छोटी वजहों ने ले ली जान

कोलकाता, 20 जून । कूचबिहार में बीते 17 महीनों में आत्महत्या के मामलों ने चौंका देने वाली रफ्तार पकड़ ली है।

पुलिस से मिले आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2024 से मई 2025 तक जिले में आत्महत्या के कुल 743 मामले प्रकाश में आए हैं। इनमें सबसे अधिक संख्या किशोर-किशोरियों की है। युवा और अधेड़ भी आत्महत्या करने वालों की सूची में शामिल हैं।

पुलिस के अनुसार, कूचबिहार में साल 2024 में कुल 493 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें 304 पुरुष और 189 महिलाएं थीं। साल 2025 के पहले पांच महीनों (एक जनवरी से 31 मई) में 225 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें 138 पुरुष और 87 महिलाएं हैं।

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि इन आत्महत्याओं के पीछे कोई एक कारण नहीं है। कई मामलों में मोबाइल न मिलना, परीक्षा में फेल होना या घरवालों से झगड़ा भी जान देने की वजह बना।

प्रेम संबंध और आर्थिक संकट भी बन रहे कारणपुलिस जांच में सामने आया है कि कई युवाओं ने प्रेम संबंध में असफलता या पारिवारिक असहमति के कारण भी आत्महत्या जैसा कदम उठाया। वहीं, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आर्थिक तंगी के चलते भी कई लोगों ने जान दे दी।

हाल ही में माथाभांगा में एक किशोरी ने सिर्फ इसलिए जान दे दी क्योंकि उसे मोबाइल नहीं मिला। एक अन्य मामले में कूचबिहार के एक प्रतिष्ठित स्कूल के छात्र ने उच्च माध्यमिक परीक्षा में एक विषय में फेल होने पर आत्महत्या कर ली।

सामाजिक ढांचे में बदलाव से बढ़ी मानसिक चुनौतियांमनोचिकित्सक डॉ. बीएल राय का मानना है कि आत्महत्याओं के पीछे सामाजिक और पारिवारिक ढांचे में हो रहे बदलाव भी जिम्मेदार हैं। आजकल परिवार छोटे हो गए हैं। माता-पिता दोनों काम में व्यस्त हैं और बच्चों के पास बात करने वाला कोई नहीं होता। इससे वे मानसिक रूप से टूट जाते हैं।

उन्होंने यह भी जोड़ा कि कम उम्र में मोबाइल देना, इंटरनेट की लत, धैर्य की कमी और नशे की लत भी आत्महत्या की दर बढ़ा रही है।

पुलिस अधीक्षक द्युतिमान भट्टाचार्य ने बताया कि पिछले 17 महीनों की अस्वाभाविक मौतों की जांच में सामने आया है कि अधिकांश मामले आत्महत्या के हैं, जो समाज के हर तबके से जुड़े हैं—जाति, धर्म या आर्थिक स्थिति से परे।

इन आंकड़ों और घटनाओं ने समाज को गहरी चिंता में डाल दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि ज़रूरत है मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने की, बच्चों को संवाद का अवसर देने की और प्रभावी परामर्श प्रणाली विकसित करने की ताकि ऐसी घटनाओं से बचा जा सके।