
कोलकाता, 17 जून । कलकत्ता हाई कोर्ट ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल सरकार की नई ओबीसी अधिसूचना पर भी अंतरिम रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि यह स्थगनादेश 31 जुलाई 2025 तक लागू रहेगा।
कोर्ट के इस निर्णय के साथ राज्य सरकार को एक और झटका लगा है, क्योंकि इससे पहले 2010 के बाद जारी किए गए सभी ओबीसी प्रमाणपत्रों को रद्द करने के खिलाफ उसकी अपील को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली थी। कोर्ट ने बताया था कि ममता बनर्जी की सरकार बनने के बाद से जितने भी ओबीसी सर्टिफिकेट जारी किए गए हैं, वे अधिकतर मुस्लिम समुदाय के लोगों को मिले हैं। जबकि ओबीसी में शामिल वास्तविक हिंदू समुदाय की जातियां, इससे पूरी तरह से वंचित रही हैं। इसके बाद से राज्य सरकार ने हाल ही में ओबीसी की नई अधिसूचना जारी की थी। अब कोर्ट ने उस पर भी रोक लगा दी है।
हाई कोर्ट की यह पीठ न्यायमूर्ति तपोब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की थी।
इससे पहले, 22 मई 2024 को हाई कोर्ट ने 2010 के बाद जारी सभी ओबीसी प्रमाणपत्रों को अमान्य ठहराया था। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि 2010 से पहले जारी 66 समुदायों को दिए गए ओबीसी प्रमाणपत्र ही वैध हैं। राज्य सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश पर कोई रोक नहीं लगाई।
राज्य सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल किशोर दत्ता ने दलील दी कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और वहां इस पर चर्चा होनी है, इसलिए हाई कोर्ट को इस पर अंतरिम आदेश नहीं देना चाहिए। इसके जवाब में हाई कोर्ट ने कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के बावजूद, राज्य सरकार ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
न्यायमूर्ति चक्रवर्ती ने राज्य से पूछा कि विधानसभा में पेश करने से पहले आपने अधिसूचना क्यों जारी कर दी? इस पर राज्य ने जवाब दिया कि केवल ड्राफ्ट अधिसूचना जारी की गई थी, लेकिन गजट अधिसूचना नहीं की गई।
राज्य की ओर से वरिष्ठ वकील कल्याण बनर्जी ने कहा कि हाई कोर्ट के पूर्व आदेशों में कुछ ‘ग्रे एरिया’ (अस्पष्टता) हैं और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश तक कोई स्थगनादेश नहीं दिया जाना चाहिए। वहीं याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता एस. श्रीराम ने कोर्ट के फैसले को पूरी तरह स्पष्ट बताया और कहा कि राज्य सरकार ने कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया।
केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अशोक कुमार चक्रवर्ती ने अदालत को बताया कि राज्य ने दो समुदायों के बीच ओबीसी की स्थिति में परिवर्तन किया है, जिससे ‘खतरनाक जनसांख्यिकीय प्रभाव’ पड़ सकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य की पिछड़ा वर्ग आयोग ने स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं लिया।
पीठ ने राज्य सरकार से दो टूक कहा कि हमने 66 समुदायों के खिलाफ कोई फैसला नहीं दिया, आप प्रक्रिया जारी रखें। अगर आप कदम नहीं उठाएंगे, तो हम भी आदेश नहीं देंगे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर सिर्फ समय टालने से काम नहीं चलेगा।
राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि हाई कोर्ट के पहले के आदेश के चलते कॉलेजों में दाखिले और सरकारी नौकरियों की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी तरह ठप पड़ी है। सरकार ने तर्क दिया कि इस मामले का असर प्रशासनिक कार्यों पर हो रहा है।