काठमांडू, 30 नवंबर। नेपाल के पश्चिमी लमजंग जिले में देश के पहले समलैंगिक विवाह का पंजीकरण किया गया है और इसे देश में लेस्बियन-गे-बाईसेक्शुअल-ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) समुदाय के अधिकारों की विजय के रूप में देखा जा रहा है।

पश्चिमी लमजंग जिले में औपचारिक रूप से माया गुरुंग (35) और सुरेंद्र पाण्डेय (27) के विवाह को बुधवार को पंजीकृत किया गया। देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक जोड़ों के विवाह के पंजीकरण के संबंध में पांच महीने पहले दिये गये अंतरिम आदेश के बाद यह पंजीकरण किया गया है। एशिया में अभी तक ताईवान ही एकमात्र देश था जहां समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिली हुई है।

विवाह के पंजीकरण के बाद श्रीमती गुरुंग ने बीबीसी से कहा, “आज का दिन केवल हमारे लिए ही नहीं बल्कि सभी लैंगिक अल्पसंख्यक समुदायों के लिए बहुत बड़ा दिन है। अपने अधिकारों की यह लड़ाई बिल्कुल भी आसान नहीं रही है, लेकिन आखिरकार हमें जीत हासिल हुई। अब आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए राह आसान होगी। हमारे विवाह के पंजीकरण ने हमारे लिए बहुत सी सुविधाओं के दरवाजे खोल दिये हैं।”

दंपती ने कहा कि वे एक संयुक्त खाता खोलना चाहते हैं और उनके द्वारा खरीदी गयी जमीन का सम्मिलित स्वामित्व भी लेना चाहते हैं, लेकिन जैसे ही उनकी आर्थिक स्थिति कुछ और मजबूत होती है तो उनका सबसे बड़ा सपना एक बच्चे को गोद लेना है।

यह जोड़ा लगभग एक दशक से साथ है। इन दोनों ने एक मंदिर में 2017 में शादी कर ली थी और इस साल उनके साथ को कानूनी मंजूरी भी मिल गयी। श्रीमती गुरुंग एक ट्रांसजेंडर महिला हैं जिन्होंने आधिकारिक तौर पर अपना लिंग परिवर्तन नहीं किया है। पाण्डेय का जन्म पुरुष के रूप में हुआ।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद इस मामले में नेपाल की राजधानी काठमांडू के जिला न्यायालय ने इन दोनों के विवाह के पंजीकरण करने की इजाजत नहीं दी थी, जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में सरकार को ऐसे मामलों में कानून के तहत जरूरी बदलाव किये जाने के दिशा निर्देश दिये थे।

जिला अदालत ने तर्क दिया था कि निचली अदालतें आदेश का पालन करने के लिए बाध्य नहीं थीं, क्योंकि यह केवल सरकार पर निर्देशित था, लेकिन बुधवार को, डोरडी ग्रामीण नगर पालिका के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी हेम राज काफले ने रॉयटर्स को बताया, “हमने सुप्रीम कोर्ट के आदेश और संबंधित सरकारी अधिकारियों के निर्देशों पर विचार करते हुए जोड़े को विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र जारी किया है।”

प्रमुख एलजीबीटी अधिकार कार्यकर्ता सुनील बाबू पंत ने इस ‘ऐतिहासिक’ क्षण को यौन और लैंगिक अल्पसंख्यकों की जीत बताया। उन्होंने कहा, “अब हम अपनी शादी को आम जोड़ों की तरह पंजीकृत करा सकते हैं, लेकिन अन्य अधिकार पाने के लिए हमें अभी और भी बहुत कुछ करना होगा।”