कोलकाता, 12 अप्रैल  । पश्चिम बंगाल शिक्षा विभाग के चार वरिष्ठ अधिकारियों को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना के आरोप में अदालती अवमानना का नोटिस जारी किया गया है। यह नोटिस इसलिए जारी हुआ क्योंकि राज्य सरकार ने उन शिक्षकों को स्कूल जाने की अनुमति दी, जिनकी नियुक्तियां सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द कर दी गई थीं।

अवमानना का नोटिस शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव विनोद कुमार, राज्य शिक्षा आयुक्त अरूप सेनगुप्ता, स्कूल सेवा आयोग के अध्यक्ष सिद्धार्थ मजूमदार और पश्चिम बंगाल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष रामानुज गांगोपाध्याय को भेजा गया है। यह नोटिस बबीता सरकार, नसरीन खातून, लक्ष्मी टुंगा, सेताबुद्दीन और अब्दुल गनी अंसारी नामक पांच व्यक्तियों की ओर से दाखिल याचिका के आधार पर जारी किया गया।

उल्लेखनीय है कि गत सप्ताह, सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें 25 हजार 753 शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों की नियुक्तियां रद्द कर दी गई थीं। अदालत ने कहा था कि राज्य सरकार और पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग योग्य और अयोग्य उम्मीदवारों को अलग करने में असफल रहे, और कई लोगों ने पैसे के बदले नौकरी प्राप्त की थी।

न्यायालय के इस स्पष्ट आदेश के बावजूद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में उन शिक्षकों से भेंट की, जिनकी नौकरियां चली गई थीं, और उन्हें “स्वैच्छिक सेवा” के रूप में स्कूल जाने की सलाह दी। इसके साथ ही, राज्य के वेतन पोर्टल पर भी इन शिक्षकों के नाम अभी तक सक्रिय दिख रहे हैं।

इससे पहले दिल्ली के एक अधिवक्ता सिद्धार्थ दत्ता ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी अवमानना का कानूनी नोटिस भेजा था। उनका कहना था कि मुख्यमंत्री के बयान से यह संकेत मिलता है कि राज्य सरकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को लागू नहीं करना चाहती।

उन्होंने कहा, “देश का हर नागरिक और संस्था सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन करने को बाध्य है। मुख्यमंत्री का हालिया बयान न्यायिक व्यवस्था के विरुद्ध है।”