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कोलकाता, 10 फरवरी। वरिष्ठ साहित्यकार डा. बाबूलाल शर्मा का कहना है कि व्यक्तित्व के विकास में परिवेश व अन्य बातों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उस व्यक्तित्व को काव्य में रूपायित करना बड़ी बात होती है, समर्थ रचनाकार ही इसमें सफल होता है।
डा. बाबूलाल शर्मा कृष्ण बिहारी मिश्र अध्ययन मण्डल के तत्वावधान में भारतीय भाषा परिषद सभागार में साहित्यकार प्रमोद शाह के काव्य संग्रह ‘पिया की नगरी चार कदम ‘के विमोचन समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि किसी कृति का शीर्षक उसकी रचना में रचनाकार की मनोदशा और उसमें निरूपित विचार, भाव व चिंतन के विस्तार एवं वैविध्य को अत्यंत साररूपेण अपने में समाये रहता है।
प्रधान वक्ता डा.रेशमी पांडा मुखर्जी ने कहा कि रचनाकार ने अपने काव्य संग्रह में जीवन को चार खंडों” समय ठहरता भी है, कामना का महामिलन, सुनो सदी और बैठा,कब से,सोच रहा हूं” में विभाजित कर अपनी बात कही है।बचपन की कविताओं को पढ़कर पाठक अपने बचपन में लौट जाता है।
महामिलन खंड की रचनाएं बताती है कि भौतिक भोग और आनंद पाने के बावजूद जीवन में संतुष्टि नहीं मिलती।
राजस्थान सूचना केंद्र के सहायक निदेशक हिंगलाज दान रतनू ने कहा कि कवि ने जो काव्य धर्म निभाया है,वह वंदनीय है। विमोचित पुस्तक के कवि प्रमोद शाह ने कहा कि जड़ हो या चेतन सब परस्पर जुड़े हुए हैं,आवश्यकता है इसे बुद्धि और तर्क के पार जाकर अनुभूत करने की।ऐसी मन:स्थिति का परिणाम है यह पुस्तक।
संस्था के अजयेन्द्र नाथ त्रिवेदी ने कार्यक्रम का संचालन व संयोजक कमलेश मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस अवसर पर डा.वसुन्धरा मिश्र, डा.सुशील ओझा,डा.किरण सिपानी,राजेंद्र केडिया, डा.शिप्रा मिश्र, राजेन्द्र कानूनगो, शिवकुमार लोहिया, महेश चंद्र शाह,डा.किरण सिपानी,राजेन्द्र खंडेलवाल, अनूप गाड़ोदिया, लीला शाह, राम कथावाचक पुरुषोत्तम तिवारी, अजय अग्रवाल,सरिता बेगानी,रामनाथ महतो,आनंद मेहता,माधव सुरेका सहित अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे।