नई दिल्ली, 10 फरवरी । राज्यसभा में उपनेता विपक्ष प्रमोद तिवारी ने आज देश में घटिया दवाओं का मामला उठाया। इसके साथ ही उन्होंने सरकार और सदन में मौजूद स्वास्थ्य मंत्री से मांग की कि वह देश में इस बारे में जागरुकता बढ़ाएं और दवाओं का गुणवत्तापूर्ण उत्पादन सुनिश्चित कराएं।

सदन में प्रश्नकाल के दौरान कांग्रेस सदस्य प्रमोद तिवारी ने देश में जीवन रक्षक घटिया दवाओं से होने वाले नुकसान पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसके कारण करोड़ों लोग प्रभावित हो रहे हैं। ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि देश में बिक रही 50 से अधिक दवाएं घटिया स्तर की बन रही हैं। इनमें पैरासिटामोल से लेकर ब्लड प्रेशर, खांसी, मल्टी विटामिन और कैल्शियम आदि की दवाएं भी हैं। उन्होंने चिंता जतायी कि देश में घटिया और नकली दवाओं का जाल फैल रहा है।

उन्होंने कहा कि 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक छोटे दवा निर्माताओं की 15 प्रतिशत से अधिक दवाइयां गुणवत्ता परीक्षण में विफल रही हैं। छोटे दवा निर्माता ग्रामीण क्षेत्रों पर ज्यादा फोकस करते हैं। ये दवाएं सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए ज्यादा खतरनाक हैं। उन्होंने कहा कि एक अनुमान के मुताबिक उत्पादन की जा रही दवाओं में 12 से 25 प्रतिशत तक मिलावटी, घटिया या नकली हो सकती हैं।

उपनेता विपक्ष तिवारी ने कहा कि जन स्वास्थ्य विधेयक के तहत 2023 में किए गए संशोधन में 27 डीएमएसक्यू के तहत मानक गुणवत्ता न होने पर कम्पाउंडिग की अनुमति दी गई। इस प्रावधान के अनुसार निर्माता अब अपराध के बदले जुर्माना भर सकते हैं। अगर सजा का प्रावधान हो तो शायद लोग बचें। सरकार बेशक कहती है कि उपरोक्त संशोधन से निर्माताओं का उत्पीड़न कम होगा जबकि आलोचकों का कहना है कि इससे दवाइयां गुणवत्ताहीन बन रही हैं।

तिवारी ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में 38 प्रतिशत घटिया दवाएं “प्रेस्क्राइब” की जा रही हैं। उन्होंने मांग की कि इसके लिए व्यापक जागरुकता अभियान चलाने के साथ ही दवा निर्माण के स्तर पर पर्याप्त गुणवत्ता सुनिश्चित की जाए। उन्होंने कहा कि 2015 से यह धंधा ज्यादा बढ़ा है। कंपाउंडिंग के बाद इसमें और ज्यादा बढ़ोतरी हुई है।