देहरादून, 07 फरवरी । उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (यूसीसी) से महिलाओं और बच्चों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा मजबूत हुई है। इसके लागू होने से विवाह एक सशक्त संस्था बनेगा और स्पष्ट गाइडलाइंस के कारण कोर्ट केस की संख्या में भी कमी आएगी।

यूसीसी का मसौदा तैयार करने वाली विशेषज्ञ समिति की सदस्य एवं दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने बताया कि समान नागरिक संहिता का मूल उद्देश्य लिंग आधारित भेदभाव समाप्त कर समानता स्थापित करना है।

प्रो. डंगवाल ने कहा कि कई मामलों में महिलाओं को यह तक पता नहीं होता था कि उनके पति ने दूसरी शादी कर रखी है। धार्मिक परंपराओं की आड़ में भी ऐसा किया जाता था। अब शादी का पंजीकरण अनिवार्य होने से इस तरह के धोखाधड़ी के मामलों पर रोक लगेगी। साथ ही, 18 साल से कम उम्र की लड़कियों की चोरी-छिपे कराई जाने वाली शादियों पर भी नियंत्रण होगा। इससे बेटियां निश्चिंत होकर अपनी उच्च शिक्षा जारी रख सकेंगी।

उनके मुताबिक, उत्तराखंड समान नागरिक संहिता में प्रावधान किया गया है कि व्यक्ति की मौत होने पर उनकी सम्पत्ति में पत्नी और बच्चों के साथ माता पिता को भी बराबर के अधिकार दिए गए हैं। इससे बुजुर्ग माता पिता के अधिकार भी सुरक्षित रह सकेंगे।

इसके अलावा, लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा बच्चे को भी विवाह से जन्मी संतान की तरह माता-पिता की अर्जित सम्पत्ति में हक दिया गया है। इससे लिव इन रिलेशनशिप में जिम्मेदारी का भाव आएगा।

प्रो. डंगवाल ने बताया कि भारत का संविधान दो वयस्क नागरिकों को अपनी पसंद से जीवनसाथी चुनने की अनुमति देता है। इसके लिए पहले से ही विशेष विवाह अधिनियम मौजूद है, जिसमें भी आपत्तियां मांगी जाती है। अब इसी तरह, कुछ मामलों में अभिभावकों को सूचना दी जाएगी। वहीं, लव जिहाद की घटनाओं को रोकने के लिए पहले से ही धर्मांतरण कानून लागू है।