कोलकाता, 1 जनवरी ।राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने पश्चिम बंगाल वन विभाग की कड़ी आलोचना की है। यह नाराजगी तीन साल की बाघिन ‘ज़ीनत’ को कोलकाता के अलीपुर चिड़ियाघर में एक और रात कैद में बिताने को लेकर है।
ओडिशा के सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व से पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा ज़िले तक ज़ीनत की 300 किलोमीटर लंबी यात्रा 21 दिनों के बाद रविवार शाम समाप्त हुई, जब उसे शांत कर पिंजरे में डाल दिया गया।
एनटीसीए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “ओडिशा वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी और वनकर्मी ज़ीनत को पकड़ने के अभियान में शामिल थे। यहां तक कि जिस पिंजरे में उसे रखा गया है, वह भी सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व का है। फिर पश्चिम बंगाल के वन अधिकारियों ने बाघिन को कोलकाता क्यों भेजा? उसे सिमलीपाल ले जाया जाना चाहिए था, जहां उसके स्वास्थ्य की जांच पूरी करके उसे शुक्रवार तक जंगल में छोड़ा जा सकता था। कोलकाता ले जाने से प्रक्रिया में देरी हुई है।”
एनटीसीए ने इस मामले में पश्चिम बंगाल वन विभाग से आधिकारिक जवाब मांगा है। प्राधिकरण का कहना है कि यदि बाघिन स्वस्थ है, तो उसे कैद में रखने का समय न्यूनतम होना चाहिए। कैद में रहना बाघ जैसे जंगली जानवरों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है।
अधिकारी ने आगे कहा, “पश्चिम बंगाल वन विभाग ने बाघिन को गलत दिशा में 300 किलोमीटर से अधिक की यात्रा कराई। अब उसे वापस सिमलीपाल ले जाना होगा, जो 350 किलोमीटर से अधिक है। फिर से स्वास्थ्य जांच के बाद उसे जंगल में छोड़ा जाएगा। यह पूरी प्रक्रिया गैर-जिम्मेदाराना थी और इससे जानवर के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है।”
ओडिशा वन विभाग ने भी पश्चिम बंगाल के मुख्य वन्यजीव संरक्षक को पत्र लिखकर बाघिन को तत्काल सौंपने की मांग की है। वहीं, पश्चिम बंगाल वन विभाग का कहना है कि वे उच्चाधिकारियों के निर्देश का इंतजार कर रहे हैं।
एनटीसीए अधिकारी ने यह भी कहा कि किसी जंगली जानवर को शहरी क्षेत्र में ले जाना उचित नहीं है, जब तक कि उसे किसी विशेष सर्जरी या इलाज की आवश्यकता न हो। कोलकाता की खराब वायु गुणवत्ता और शोर का बाघिन के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वर्ष के अंत में पटाखों के प्रदूषण और अलीपुर चिड़ियाघर के शहरी क्षेत्र में होने से ज़ीनत को और भी परेशानियां हो सकती हैं।
इस घटना ने वन्यजीव संरक्षण और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।