कोलकाता, 5 दिसंबर। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित और बौद्ध अध्ययन के प्रसिद्ध विद्वान सुनीति कुमार पाठक का गुरुवार को पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के बोलपुर-शांतिनिकेतन स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। वे 101 वर्ष के थे।

सुनीति कुमार पाठक गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्व भारती विश्वविद्यालय के इंडो-तिब्बती अध्ययन विभाग से जुड़े हुए थे। उन्होंने 1972 से 1986 तक विश्वविद्यालय के डीन के रूप में अपनी सेवाएं दीं। इसके अलावा, वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन विभाग में अतिथि प्राध्यापक और भारत एवं विदेशों के कई विश्वविद्यालयों में बौद्ध तथा इंडो-तिब्बती अध्ययन के लिए अतिथि शिक्षक के रूप में कार्यरत रहे।

उनके शैक्षणिक योगदान को राष्ट्रपति पुरस्कार, मंजुश्री पुरस्कार और साहित्य परिषद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। महाबोधि सोसाइटी द्वारा उन्हें ‘भानक’ (धर्म के वाचक) की उपाधि दी गई थी।

 

सुनीति कुमार पाठक लगभग 200 पुस्तकों के लेखक थे और नौ भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ थी। उन्होंने संस्कृत कॉलेज, कोलकाता से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय से पाली (महाजन गोष्ठी) का अध्ययन किया। स्नातकोत्तर के बाद उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के साइनो-तिब्बती अध्ययन विभाग में शोधकर्ता के रूप में कार्य शुरू किया। एक समय वे भारतीय सेना में भाषा शिक्षक, अनुवादक और दुभाषिया के रूप में भी नियुक्त हुए।

उन्होंने 1984 में विश्व भारती विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्ति ली और अपने जीवन के अंतिम दिनों तक बोलपुर-शांतिनिकेतन में निवास किया।

उनकी प्रमुख पुस्तकों में ‘हिमालय और तिब्बत में तांत्रिक परंपरा’ और ‘नागानंद का द्विभाषी शब्दावली’ शामिल हैं। उन्होंने हिमालय के दूरदराज के गांवों में भ्रमण कर शोध और पुस्तकों के लिए फील्ड नोट्स इकट्ठा किए।

वे हिमालय के दुर्गम गांवों में पैदल यात्रा करना पसंद करते थे। सरकार द्वारा उन्हें शोधकार्य के लिए वाहन उपलब्ध कराए जाने का प्रस्ताव दिया गया था, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। सुनीति कुमार पाठक के निधन से बौद्ध अध्ययन और साहित्य के क्षेत्र में एक युग का अंत हो गया है।