खतरा बने बांध और बैराज हटाने की मांग
महासीर को पकड़ने पर लगे पूर्ण प्रतिबंध
अगली सुनवाई 10 मार्च 2025 को
ओंकार समाचार
कोलकाता,28 नवंबर। गंगामिशन के राष्ट्रीय महासचिव प्रह्लाद राय गोयनका ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका दायर कर ताजे पानी में पाई जाने वाली मछली गोल्डन महासीर और उसके प्राकृतिक आवास के संरक्षण की मांग की है। याचिका में गोल्डन महासीर के लिए खतरा बने बांधों और बैराजों को हटाने तथा इसे पकड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। याचिका में भारत सरकार को प्रतिवादी बनाया गया है।
याचिका में कहा गया है कि जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करने वाली गतिविधियों के कारण गोल्डन महासीर की तादाद दिन ब दिन कम होती जा रही है। याचिका में बताया गया है कि गोल्डन महासीर जिसे “टोर पुटिटोरा” भी कहा जाता है, अब लुप्तप्राय प्रजातियों में से एक है।
याचिका में उन कारकों का जिक्र किया गया है जिनकी वजह से गोल्डन महासीर का अस्तित्व खतरे में है साथ ही इसे बचाने के उपाय भी बताए गए है।
न्यायाधिकरण ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुए हलफनामे के माध्यम से जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और अगली सुनवाई 10 मार्च 2025 को निर्धारित की है।
याचिका में महाशीर मछली पर आसन्न खतरे की वजह भी बताई है।
- शहरीकरण, वनों की कटाई, बांधों एवं बैराज के निर्माण एवं पारिस्थितिकी तंत्र को हुए नुकसान की वजह से गोल्डन महासीर के प्राकृतिक आवासों को क्षति पहुची है। इससे गोल्डन महासीर की यात्रा प्रवास और प्रजनन करने की क्षमता प्रभावित हुई है।
- याचिका में कहा गया है कि औद्योगिक और मानव प्रदूषण। कृषि अपवाह, अन्य स्रोतों से होने वाले जल प्रदूषण की वजह से गोल्डन महासीर के स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता पर विपरीत असर पड़ा है और उनकी आबादी घटने लगी है।
- मछली पकड़ने वाले भले कानूनी तौर पर मछली पकड़ रहे हों या फिर गैर कानूनी तौर पर, उनके मछली पकड़ने के अनुचित तरीकों की वजह से महासीर की आबादी घटती जा रही है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण पानी के तापमान और प्रवाह के पैटर्न में आ रहे बदलाव ने गोल्डन महासीर के प्रजनन और यात्रा प्रवास पैटर्न को बाधित किया है। जिससे उनके अस्तित्व पर और अधिक प्रभाव पड़ सकता है।
- गोल्डन महसीर के प्राकृतिक आवास में बाहरी आक्रामक प्रजातियों की मछलियों से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र बाधित हो रहा है और गोल्डन महसीर की आबादी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है (जैसे गोविंदसागर जलाशय)।
- जलीय प्रणालियों की पारिस्थितिक स्थितियों के ह्रास और मछली पकड़ने वालों द्वारा मछलियों को अचेत करने के लिए विस्फोटकों, जहर और करंट युक्त तारों जैसे क्रूर तरीकों का इस्तेमाल करने से गोल्डन महासीर की आबादी पर विपरीत असर पड़ रहा है।
याचिका में गोल्डन महाशीर को विलुप्त होने को रोकने के लिए उपाय भी सुझाए हैं:-
- गोल्डन महासीर के संरक्षण के लिए जहां जहां गोल्डन महासीर मछली पाई जाती है उन सभी आवासों एवं सभी महत्वपूर्ण जल निकास बेसिन का अध्ययन किया जाना चाहिए। बेसिन में पाए जाने वाले जीव जंतुओं की पहचान के लिए उनके सभी प्रमुख लक्षणों पर विचार करना चाहिए, माइटोकॉन्ड्रियल और न्यूक्लियर जीन की जांच की जानी चाहिए और टैक्सोनॉमिक एनालिसिस किया जाना चाहिए।
- उन आदर्श परिस्थितियों की पहचान की जानी चाहिए जिनमें प्राकृतिक रूप से वहां पाई जाने वाली मछलियों को रखा जा सके साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील या सहनशील प्रजातियों की पहचान की जानी चाहिए। इससे यह निर्धारित करने में सहायता मिलेगी कि संरक्षण प्रयासों में किन प्रजातियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- सिंधु, गंगा, ब्रहमपुत्र बेसिन में मछलियों एवं अन्य जलीय जीवों का आकलन करना चाहिए
- जल प्रवाह (ई-फ्लो) का आकलन और क्रियान्वयन करना चाहिए
- जलवायु परिवर्तन के अनुकूल रणनीतियों का विकास करना चाहिए
- महासीर को बचाने के लिए मछली पकड़ने के उचित तरीको को लागू करना और उनका प्रचार प्रसार करना चाहिए
- संरक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से प्राकृतिक आवासों को बहाल करने और उनका संरक्षण करने के प्रयास करना चाहिए
- प्राकृतिक जल की पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को बहाल कर जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखना चाहिए
- महसीर की सुरक्षा के प्रति जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय समुदायों को संरक्षण प्रयासों में शामिल कर उनमें जागरूकता पैदा करनी चाहिए।
- प्रजातियों के व्यवहार, पारिस्थितिकी को समझने के लिए अनुसंधान और निगरानी कार्यक्रमों शुरू किए जाने चाहिए।
- महासीर के आवास को प्रभावित करने वाले सभी बांधों/बैराजों को हटाना चाहिए
- तादाद बहुत कम हो जाने की वजह से गोल्डन महसीर के मछली पकड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए
न्यायाधिकरण ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुए हलफनामे के माध्यम से जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और अगली सुनवाई 10 मार्च 2025 को निर्धारित की है।