पटना, 28 नवम्बर। बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों में (विधानसभा-विधानपरिषद) शीतकालीन सत्र के चौथे दिन सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन पर सीएजी ने वर्ष 2016-22 तक की ऑडिट रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट के मुताबिक राज्य स्वास्थ्य सेवा निदेशालय, राज्य औषधि नियंत्रक, खाद्य सुरक्षा विंग, आयुष और स्वास्थ्य विभाग के मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (एमसीएच) में कुल 49 प्रतिशत पद रिक्त है।

बिहार में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सिफारिश को पूरा करने के लिए 1,24,919 एलोपैथिक डॉक्टरों की आवश्यकता थी, जिसके मुकाबले केवल 58,144 एलोपैथिक डॉक्टर ही उपलब्ध है। स्टाफ नर्स की कमी 18 प्रतिशत (पटना) से 72 प्रतिशत (पूर्णिया) और पैरामेडिक्स की कमी 45 प्रतिशत (जमुई) से 90 प्रतिशत (पूर्वी चंपारण) तक थी।

सीएजी के रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित 82 प्रकार के 24,496 पदों में से 35 प्रकार के 13,340 पदों के लिए भर्ती विभाग की ओर से नियुक्त मानव संसाधन एजेंसी के पास जनवरी 2022 तक लंबित थी।

रिपोर्ट के मुताबिक सभी नमूना-जांच किए गए चार एसडीएच में आपातकालीन ओटी उपलब्ध नहीं थी, हालांकि इसे भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों (आईपीएचएस) के अनुसार प्रत्येक एसडीएच में उपलब्ध कराया जाना था। वर्ष 2016-22 के दौरान 11 नमूना जांच की गई स्वास्थ्य सुविधाओं में पंजीकृत गर्भवतियों में से एक से 67 प्रतिशत को आईएफए गोलियों का पूरा कोर्स नहीं दिया गया। वित्त वर्ष 2016-22 के दौरान 16 नमूना जांच की गई स्वास्थ्य सुविधाओं में रिपोर्ट की गई मातृ मृत्यु के 24 मामलों में से केवल एक मामले (पीएचसी, गोरौल) में मातृ मृत्यु की समीक्षा की गई। परीक्षण जांच की गई 68 स्वास्थ्य सुविधाओं में 19 प्रतिशत से 100 प्रतिशत आवश्यक नैदानिक ​​परीक्षण सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं।

सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 19 स्वास्थ्य सुविधाओं (पीएचसी से एसडीएच) में, वर्ष 2016-22 के दौरान लैब तकनीशियनों (एलटी) की कमी 100 प्रतिशत (औसतन) तक थी। 25 एम्बुलेंसों के संयुक्त भौतिक सत्यापन से पता चला कि किसी भी एम्बुलेंस में समझौते के अनुसार आवश्यक उपकरण, दवा, उपभोग्य वस्तुएं नहीं थीं। कमी 14 प्रतिशत से लेकर 100 प्रतिशत तक थी। 10 एसडीएच, आरएच और सीएचसी में से किसी में भी कार्यात्मक रक्त भंडारण इकाई (बीएसयू) नहीं थी। आठ स्वास्थ्य सुविधाओं में राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण के जारी किए गए जनशक्ति और प्राधिकरण प्रमाणपत्रों की अनुपलब्धता के कारण बीएसयू गैर-कार्यात्मक थे। दवाओं, दवाओं, उपकरणों और अन्य उपभोग्य सामग्रियों की उपलब्धता 2016-22 के दौरान, नोडल एजेंसी यानी बिहार मेडिकल सर्विसेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीएमएसआईसीएल) ने केवल 14 से 63 प्रतिशत आवश्यक 387 दवाओं के लिए आपूर्तिकर्ताओं के साथ दर अनुबंध निष्पादित किया, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी दवाएं अनुपलब्ध रहीं।

स्वास्थ्य सुविधाओं में, वर्ष 2016-22 के दौरान ओपीडी के लिए आवश्यक दवाओं की अनुपलब्धता 21 प्रतिशत से 65 प्रतिशत के बीच थी, जबकि आईपीडी के लिए यह अनुपलब्धता 34 प्रतिशत से 83 प्रतिशत थी। दरभंगा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (डीएमसीएच) और राजकीय मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (जीएमसीएच), बेतिया में, बीएमएसआईसीएल द्वारा दवाओं की कम/गैर-आपूर्ति के कारण, वित्तीय वर्ष 2019-21 के दौरान 45 से 68 प्रतिशत दवाएं उपलब्ध नहीं थीं। राज्य आयुष सोसायटी, बिहार भारत सरकार द्वारा निर्धारित आवश्यक दवाओं की खरीद नहीं कर सकी, हालांकि वित्तीय वर्ष 2014-20 के दौरान 35.36 करोड़ रुपये का अनुदान प्रदान किया गया था। डीएमसीएच, पीएमसीएच और जीएमसीएच में मशीनों और उपकरणों की आवश्यक संख्या के मुकाबले कमी क्रमशः 25 प्रतिशत और 100 प्रतिशत, 33 प्रतिशत और 94 प्रतिशत तथा 50 प्रतिशत और 100 प्रतिशत के बीच थी।

परीक्षण-जांच की गई स्वास्थ्य सुविधाओं में उपलब्ध 132 वेंटिलेटर में से केवल 71 ही कार्यात्मक पाए गए। तकनीशियनों की अनुपलब्धता और गैर-कार्यात्मक आईसीयू के कारण 57 वेंटिलेटर बेकार पड़े थे।

राज्य के 47 उप-विभागों में उप-विभागीय अस्पताल (एसडीएच) उपलब्ध नहीं थे, हालांकि आईपीएचएस मानदंडों के अनुसार आवश्यक थे।बिहार सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के अनुरूप कोई व्यापक स्वास्थ्य नीति/योजना तैयार नहीं की है, ताकि प्रत्येक स्वास्थ्य सुविधा में बुनियादी ढांचे/उपकरणों की कमी को दूर किया जा सके। विभाग ने (मार्च 2007 से फरवरी 2010 तक) 399 पीएचसी को सीएचसी में अपग्रेड करने की मंजूरी दी, लेकिन मार्च 2022 तक, निष्पादन एजेंसी (बिहार राज्य भवन निर्माण निगम लिमिटेड) ने केवल 191पीएचसी का निर्माण कार्य पूरा किया।

विभाग ने 198 पीएचसी को सीएचसी में अपग्रेड करने के लिए बीएमएसआईसीएल को (अप्रैल 2011 से नवंबर 2015 तक) 257,02 करोड़ रुपये

कुल 1,932 पीएचसी/एपीएचसी के निर्माण के लिए दिये गए थे जिसमें से केवल 67 भवनों का निर्माण कार्य पूरा हो सका।