रेलवे की बराबरी के लिए अभी बेलने होंगे कई ‘डिजीटल पापड़’

(कौशल मूंदड़ा)

उदयपुर, 19 नवम्बर  : राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम यानी हमारी रोडवेज अब ऑनलाइन की राह पर चल पड़ी है। टिकट खिड़कियों को हटाकर टिकट बुकिंग का कार्य पूरी तरह से डिजीटल कर दिया गया है। लेकिन, इस राह में रोडवेज के सामने कई चुनौतियां हैं। टिकट ऑनलाइन बुक करने में जरूर रोडवेज ने सफलता पा ली है, लेकिन इसी के समानांतर अब तक रोडवेज छोटे स्टेशनों को ऑनलाइन से नहीं जोड़ सकी है और निकट भविष्य में रोडवेज के लिए यह बड़ी चुनौती साबित होने वाली है। लोग कहने लगे हैं कि रेलवे की बराबरी करने के लिए अभी रोडवेज को कई डिजीटल पापड़ बेलने होंगे।

दरअसल, रोडवेज ने हाल ही पूरे राजस्थान में हर बस के लिए प्रतिदिन 400 किलोमीटर के फेरे की नीति बना दी है। इसके लिए नई बसें भी मैदान में उतारी गई हैं। हर डिपो को 8 से 10 बसें नई मिली हैं। लेकिन, इन बसों में चालक-परिचालकों की भरपाई करने के लिए नई भर्ती की कोई व्यवस्था नहीं की गई और न ही संविदा आधारित कोई नई योजना लाई गई है। ऐसे में कई डिपो पर टिकट खिड़कियों को बंद कर उसमें लगे स्टाफ को बसों में लगा दिया गया है। इस नई व्यवस्था से पूछताछ केन्द्र भी अछूते नहीं रहे हैं। कई स्टेशनों पर जानकारी देने वाला भी नहीं रहा है। लोग बस स्टेशन के आसपास खड़े रहने वाले चाय के ठेलों, पान की दुकानों वालों से बसों के आने-जाने की जानकारी ले रहे हैं।
छोटे स्टेशन नहीं हैं ऑनलाइन

-ऑनलाइन पोर्टल पर डिपो मुख्यालयों से कहीं जाने के लिए तो बसें शो हो जाती हैं, लेकिन छोटे स्टेशनों से कहीं जाने के लिए ऑनलाइन पर बसें शो नहीं होती। उदाहरणत: उदयपुर से शाहपुरा तक की बसें तो नजर आ रही हैं, लेकिन शाहपुरा से उदयपुर की बस नजर नहीं आती। इसी तरह, मावली से कहीं भी जाने के लिए बसें नजर नहीं आती, गंगापुर, कांकरोली जैसे छोटे स्टेशनों से भी बसे ऑनलाइन नजर नहीं आ रही हैं।

करो तो पूरा ऑनलाइन करो
-लोगों का कहना है कि करना है तो पूरी तरह ऑनलाइन करना चाहिए जिससे छोटे स्टेशनों के यात्री को भी अपने मोबाइल पर अपने छोटे शहर से चलने वाली रोडवेज बसों की जानकारी घर बैठे मिल सके। ऐसा नहीं होने पर रोडवेज कैसे डिजीटल दुनिया में निजी क्षेत्र का मुकाबला कर सकेगी। और दूसरी भाषा में इसे रोडवेज का छोटे शहरों से सौतेलापन भी कहा जा सकता है।

वर्ना पूछताछ केन्द्र चालू रखो
-यात्रियों का कहना है कि कुछ छोटे स्टेशनों पर बुकिंग के लिए एजेंट लगा रखे हैं जो दिन में तो नजर आते हैं, लेकिन शाम के बाद नहीं दिखते। पूछताछ केन्द्र तो हैं ही नहीं। जिन छोटे स्टेशनों पर हैं, वहां कर्मचारी शाम के बाद नहीं दिखाई देते। बस स्टैंड पर चाय की थड़ी या अन्य दुकानें लगाने वाले ही यात्रियों के लिए पूछताछ केंद्र हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जाने के लिए साधारण बसों में सफर करने वाले यात्रियों के लिए भी परेशानी बढ़ी है।

सीट पर बैठे यात्री को उठाना पड़ता है
-अब बस के अंदर ही टिकट मिलती है। जो यात्री जिस सीट पर बैठा है, कंडक्टर वही सीट उसे दे देता है। इस बीच, ऑनलाइन बुक कराने वाले यात्री जब पहुंचते हैं तो उन्हें उनकी सीट पर बैठे यात्री को उठाना पड़ता है। यह स्थिति सभी को थोड़ी सी असहज सी लगती है। दरअसल, अब परिचालकों को प्रिंटेड चार्ट भी नहीं मिलता, इसलिए उन्हें यह नहीं पता चल पाता कि कौन सी सीट ऑनलाइन बुक हो चुकी है। यात्री के आने पर ही वे अपनी मशीन में चैक करते हैं कि सीट ऑनलाइन बुक है या नहीं।

हर छोटे स्टेशन को ऑनलाइन करना जरूरी
– रोडवेज महकमा खुद को ऑनलाइन करना चाह रहा है तो हर छोटे स्टेशन को भी ऑनलाइन करना जरूरी है, वर्ना छोटे स्टेशनों के यात्रियों के लिए तो रोडवेज वही पुराना राग रहेगी। जानकारों का कहना है कि एक साथ बड़ा काम करने के बजाय चरणबद्ध तरीके से बसों को ऑनलाइन किया जा सकता है। पहले एसी, डीलक्स बसों और फिर एक्सप्रेस श्रेणी की बसों को सभी छोटे स्टेशनों पर ऑनलाइन पर शो किया जाना चाहिए।