नई दिल्ली, 11 अक्टूबर। इस वर्ष का शांति का नोबेल पुरस्कार जापानी संगठन निहोन हिडांक्यो को दिया जाएगा। निहोन हिडांक्यो हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु बम हमले में जीवित बचे लोगों का एक संगठन है। इसे हिबाकुशा के नाम से भी जाना जाता है।

नॉर्वेजियन नोबेल समिति के अनुसार 2024 नोबेल शांति पुरस्कार देने का मकसद हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु बम हमले से बचे सभी लोगों को सम्मानित करना है। इन लोगों ने शारीरिक पीड़ा और दर्दनाक यादों के बावजूद शांति के लिए आशा और प्रतिबद्धता का विकल्प चुना है।

अगले वर्ष इस भयावह त्रासदी के 80 वर्ष पूरे हो जाएंगे। हिरोशिमा और नागासाकी पर क्रमशः 6 एवं 9 अगस्त 1945 को अमेरिका ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान परमाणु बम गिराए थे। इसमें अनुमानित 1 लाख 20 हजार नागरिकों की मौत हुई थी। इसके बाद के महीनों एवं वर्षों में झुलसने और विकिरण के कारण भी हजारों मौतें हुई थीं और कई लोग बीमार और अपाहिज हुए थे।

इसके बाद 1956 में प्रशांत क्षेत्र में परमाणु हथियार परीक्षण के पीड़ितों के साथ स्थानीय हिबाकुशा संघों ने जापान परिसंघ ए और एच- बम पीड़ित संगठनों का गठन किया। जापानी भाषा में इस नाम को छोटा करके निहोन हिडांक्यो कर दिया गया।

विज्ञप्ति के अनुसार निहोन हिडांक्यो को इस साल का नोबेल देने पर नॉर्वेजियन नोबेल समिति एक उत्साहजनक तथ्य को स्वीकार करना चाहती है। लगभग 80 वर्षों में युद्ध में किसी भी परमाणु हथियार का इस्तेमाल नहीं किया गया है। निहोन हिडांक्यो और हिबाकुशा के अन्य प्रतिनिधियों के असाधारण प्रयासों ने परमाणु निषेध लाने में बहुत योगदान दिया है।

पुरस्कार समिति के मुताबिक परमाणु शक्तियां अपने शस्त्रागारों का आधुनिकीकरण और उन्नयन कर रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि नये देश परमाणु हथियार हासिल करने की तैयारी कर रहे हैं। चल रहे युद्ध में परमाणु हथियारों का उपयोग करने की धमकियां दी जा रही हैं। मानव इतिहास के इस क्षण में हमें खुद को यह याद दिलाना ज़रूरी है कि परमाणु हथियार क्या हैं। यह दुनिया में अब तक देखे गए सबसे विनाशकारी हथियार हैं।