कोलकाता, 30 सितंबर (हि.स.)। आर.जी. कर अस्पताल में महिला डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या के विरोध में मंगलवार को कोलकाता में विभिन्न संगठनों द्वारा निकाले जाने वाले मार्च को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट ने पुलिस को अनुमति देने का निर्देश दिया। कोर्ट ने राज्य से सवाल भी किया कि दुर्गापूजा के समय भीड़ को नियंत्रित करने में पुलिस कैसे काम करती है, तो मार्च के लिए क्यों दिक्कत आ रही है।
करीब 40 से अधिक संगठनों ने इस घटना के विरोध में धर्मतल्ला से लेकर रविंद्र सदन तक मार्च निकालने की योजना बनाई है। इसमें जूनियर डॉक्टरों के संगठन, यौनकर्मी, ट्रांसजेंडर, रिक्शाचालक, मानसिक स्वास्थ्यकर्मी, और यहां तक कि ईस्ट बंगाल और मोहन बागान क्लब के समर्थक भी शामिल होंगे। पुलिस ने इस मार्च के लिए पहले अनुमति नहीं दी थी, जिसके बाद आयोजकों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
राज्य सरकार ने कोर्ट में दलील दी कि अगर मार्च में भाग लेने वाले लोगों की सटीक संख्या नहीं बताई जाएगी, तो यातायात नियंत्रण में परेशानी हो सकती है। इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील बिकाशरंजन भट्टाचार्य ने कहा कि हम अपने हिस्से की संख्या बता सकते हैं, लेकिन अगर आम जनता इस मार्च में शामिल होती है, तो उसकी संख्या पहले से कैसे बताई जा सकती है ?
बेंच के जस्टिस राजर्षि भट्टाचार्य ने राज्य सरकार से सवाल किया कि अगर इस मार्च में 10 लाख लोग शांतिपूर्ण ढंग से शामिल होते हैं, तो क्या उन्हें रोका जा सकता है ? विरोध करना उनका संवैधानिक अधिकार है। क्या राज्य यातायात की समस्या का हवाला देकर इस अधिकार को सीमित कर सकता है ?
राज्य की ओर से यह तर्क दिया गया कि नागरिकों के हित में विभिन्न आयोजनों को नियंत्रित करने का अधिकार उनके पास है। कोर्ट ने कहा कि अगर शहर में धारा 144 लागू कर दी जाए, तो किसी भी प्रकार के विरोध या सभा की संभावना समाप्त हो जाएगी। साथ ही, कोर्ट ने दुर्गापूजा के समय की भीड़ को नियंत्रित करने की पुलिस की क्षमता का भी उल्लेख किया।
आखिरकार, कोर्ट ने आयोजकों को निर्देश दिया कि वे पर्याप्त संख्या में स्वयंसेवक तैनात करें ताकि मार्च के दौरान कोई अव्यवस्था न हो और पुलिस को यातायात नियंत्रण में मदद मिल सके।