कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन कर देश से गद्दारी की

नई दिल्ली, 25 अगस्त । बांग्लादेश में बदली राजनीतिक परिस्थिति और हिंसक वातावरण के बीच असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने बड़ा दावा किया है। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा है कि पिछले दिनों में बांग्लादेश से घुसपैठ कर असम आने वालों में अधिकांश मुस्लिम थे, जबकि एक भी हिन्दू इधर नहीं आया। इस आधार पर उनका दावा है कि हिन्दू लोग बांग्लादेश में ही रह कर संघर्ष कर रहे हैं।

एक प्रेस कांफ्रेंस में दिए गए बयान को साझा करते हुए असम के मुख्यमंत्री ने लिखा- ‘कुछ दिनों से बांग्लादेश से जो अवैध घुसपैठिए आ रहे हैं, उनका विश्लेषण किया गया है। उनमें से एक भी हिंदू नहीं था। हिंदू वहां रहकर सिस्टम के खिलाफ लड़ रहे हैं। भारत आ रहे वे घुसपैठिए मुसलमान हैं जिनकी नौकरियां बांग्लादेश में कपड़े के कारखाने बंद होने के कारण चली गईं और जो नौकरी के लिए तमिलनाडु जा रहे हैं।’

वहीं, हिमंता सरमा ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेस के गठबंधन को देश के खिलाफ गद्दारी करार दिया है। असम के मुख्यमंत्री ने कहा कि नेशनल कांफ्रेंस के चुनावी घोषणापत्र में साफ लिखा गया है कि वे सत्ता में आए तो न केवल अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए काम करेंगे बल्कि कश्मीर में ऐतिहासिक और प्राचीन शंकराचार्य पर्वत का नाम बदल देंगे। वे एससी, एसटी व अन्य पिछड़ों को मिलने वाला आरक्षण समाप्त कर फिर से पिछली व्यवस्था लागू कर देंगे। गांधी परिवार का करीबी नेशनल कांफ्रेंस और अब्दुल्ला परिवार हमेशा से भारतीय सेना के विरोधी और भारत विरोधी लोगों के साथ हाथ मिलाता रहा है। ऐसे दल के साथ चुनावी गठबंधन कर कांग्रेस ने देश के साथ गद्दारी की है।

इसी के साथ ‘एक्स’ पर एक दूसरी पोस्ट में हिमंता सरमा ने दो घुसपैठियों के फोटो साझा करते हुए लिखा कि पिछले एक महीने में असम पुलिस ने 35 बांग्लादेशी घुसपैठियों को पकड़ा और सीमा सुरक्षा बल की सहायता से उन्हें सीमा पार बांग्लादेश भेज दिया। ऐसे ही दो लोगों को बीती रात भी बांग्लादेश भेजा गया है। इनमें से एक आदमी का नाम मासूम अली है जबकि उसके साथ पकड़ी गई महिला का नाम सोनिया अख्तर है। ये दोनों त्रिपुरा के रास्ते घुसपैठ कर भारत में घुसे थे और असम के बदरपुर रेलवे स्टेशन से बैठ कर बेंगलुरू जाने की योजना में थे, जहां से असम पुलिस ने इन्हें हिरासत में ले लिया। पूछताछ और उनके बांग्लादेशी होने के पुख्ता सबूतों के बाद उन्हें सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के हवाले कर दिया गया, जिन्होंने इन्हें वापस बांग्लादेश भेज दिया।