नई दिल्ली, 05 जुलाई। नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट (एनजीएमए) के महानिदेशक संजीव किशोर गौतम का मानना है कि देश की पारंपरिक लोक कला को जिंदा रखने और उनके विकास के लिए समकालीन कला को बाजार की जरूरत है। कला के कद्रदान होंगे तो कलाकार और उसकी कला को जिंदा रखा जा सकता है। हिन्दुस्थान समाचार से खास बातचीत में गौतम ने कहा कि आज समकालीन कला के सामने दो प्रमुख चुनौतियां हैं। इसका सामना करने के लिए सबसे पहले कला शिक्षा में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम में बदलाव की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि स्कूल एवं कॉलेजों के कला पाठ्यक्रम में देश की पांरपरिक लोककला को शामिल किए बिना छात्रों को समकालीन कला का ज्ञान नहीं हो सकता। अभी जब वे कॉलेज से बाहर निकलते हैं तो अपने आपको बेहद असहज पाते हैं, क्योंकि किताबों का ज्ञान वास्तविकता से अलग होता है। इसलिए पाट्यक्रम में बदलाव की जरूरत है
संजीव किशोर बताते हैं कि पाट्यक्रम में ट्राइब आर्ट और लोक परंपरा को शामिल करना चाहिए । इसके साथ समकालीन कला के लिए देश भर में आर्ट मार्केट के कॉन्सेंप्ट को विकसित करने की आवश्यकता है। आर्ट मार्ट का कॉन्सेंप्ट पर गंभीरता से सोचना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस महीने में एनजीएमए एक पहल की शुरुआत करने जा रहा है । प्रिंट मेकिंग प्रदर्शनी के लिए देश भर से 250 महिला कलाकारों का चयन किया गया है। इनकी कला की प्रदर्शनी लगाई जाएगी।
उन्होंने बताया कि चित्र काव्यम रामायण और शक्ति प्रदर्शनी को बेल्जियम ले तुसाद गैलरी में प्रदर्शित किया जाएगा। इसके साथ यूरोपियन देशों में भी इस अनूठी कला प्रदर्शनी को प्रदर्शित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि एनजीएमए का उद्देश्य कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक मणिपुर से लेकर छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और कई राज्यों में छुपी कला को उजागर करना है और वहां के कलाकारों को मंच के साथ जीविकोपार्जन का जरिया देना है।
संजीव बताते हैं कि हमारे देश की मिट्टी की खुशबू पारंपरिक लोककला में है जो कैनवस में जान डाल देती है फिर चाहे मधुबनी पेंटिग्स हो, या फिर गोंड कला हो। परंपरा पेंटिग्स को जीवंत करने का काम करती है इसलिए लोक कलाकार, चित्रकार, पेंटरों को आगे बढ़ाने की दिशा में काम करना बेहद जरूरी है । विदेश में भारत की पेंटिग्स और कला को बहुत सराहा जाता है, क्योंकि हमारी कला में मिट्टी की महक होती है।