दरभंगा 11 अक्टूबर। उर्दू के स्थापित लेखक एवं आलोचक डॉ. नसर मल्लिक (डेन्मार्क) ने कहा कि मीर तकी मीर की नज्में और गजले सिर्फ इश्क की दास्तान नहीं बल्कि मूल्यों और नैतिकता के सबक भी पढ़ाती हैं।
डॉ. मल्लिक ने बुधवार को यहां सीएम कॉलेज में मीर तकी मीर की 300वीं जयंती के अवसर पर आयोजित दो दिवसीय अंतराष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे दिन कहा कि मीर की शायरी को समझने के लिए यह आवश्यक है कि 18वीं सदी के भारत को समझा जाय। उस वक्त जो राजनीतिक उथल-पुथल थी और दिल्ली सल्तनत पर नादिर शाही हमले हो रहे थे, मीर उन सभी वारदातों को अपनी शायरी में बांध रहे थे। उन्होंने कहा कि मीर की बदौलत उर्दू शायरी ऐतिहासिक सच्चाईयों की प्रमाणिकता बन गई है।
इस मौके पर प्रो. महमूद काविश (अमेरिका) ने कहा कि मीर की शायरी को दिल और दिल्ली का मरसिया कहा जाता है। उसका अर्थ भी यही है कि मीर के समय में दिल्ली पर बार-बार बाहरी आक्रमण हो रहे थे और मीर अपनी आंखों से न सिर्फ दिल्ली की बर्बादी को देख रहे थे बल्कि अपनी रचनाओं में अपने दर्द को भी बयान कर रहे थे।
उर्दू आलोचक डॉ. मुजाहिदुल इस्लाम (लखनऊ) ने मीर की शायरी और उनके जीवन पर प्रकाश डाला और यह साबित करने की कोशिश की कि उर्दू साहित्य के इतिहास में मीर एक अमर शायर के तौर पर स्थापित हैं क्योंकि उनकी शायरी आम बोल चाल की भाषा में है और लोक पीड़ा से भरी पड़ी है। प्रो. इफ्तेखार अहमद ने मीर को उर्दू का एक महान कवि और एक महान मानवतावादी साहित्यकार कहा और मीर की शायरी को नये आयामों से देखने की वकालत की।
प्रधानाचार्य प्रो. मुश्ताक अहमद ने समापन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि यह दो दिवसीय सेमिनार मीर तकी मीर जैसे कालजयी कवि के जीवन और दृष्टिकोणों की परत दर परत तह तक पहुंचने में सहायक सिद्ध होगी। उन्होंने कहा कि ऑफलाईन और ऑनलाईन दोनों रूप में तीन तकनीकी सत्रों में 20 से अधिक उर्दू के स्थापित साहित्यकारों और आलोचकों ने पत्र वाचन किए और बड़ी संख्या में देश विदेश के शोधकर्ताओं ने अपनी भागीदारी से इस सेमिनार को जीवन्तता प्रदान की है।
प्रो. अहमद ने कहा कि मुझे प्रसन्नता है कि उर्दू और फारसी विभाग के शिक्षकों ने इस दो सेमिनार को कामयाब बनाने में अथक मेहनत की जिसका प्रमाण है कि आज राष्ट्रीय स्तर पर इस सेमिनार की चर्चा हो रही है। साथ ही बड़ी संख्या में विदेशों के साहित्यकार की भागीदारी से मीर तकी मीर की मकबूलियत का प्रमाण मिलता है। उन्होंने कहा कि जितने शोध-पत्र पढ़े गये हैं शीघ्र ही इसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। आज भी बड़ी संख्या में दरभंगा और आस-पास के उर्दू साहित्यकारों और शोधकर्ताओं ने अपनी मौजूदगी से सेमिनार को अंत तक जीवन्तता प्रदान की।