एक पूर्व प्रधानमंत्री से लेकर केन्द्रीय मंत्रियों की भी सीट रही है सूरत
सूरत, 05 अप्रैल। हीरा और कपड़ा उद्योग से विश्व में अपनी चमक बिखेरने वाला सूरत राजनीतिक रूप से भी समृद्ध शहर रहा है। यहां से देश को प्रधानमंत्री और केन्द्रीय मंत्री भी मिले हैं। सूरत वह शहर है जहां एक जमाने में 84 देशों के साथ वाणिज्य-व्यापारिक संबंध जुड़े थे। अंग्रेजों की प्रथम व्यापारिक कोठी फैक्ट्री वर्ष 1608 में सूरत में खोली गई थी। इसके बाद अंग्रेजों ने भारत में पैर पसारना शुरू कर दिया था।
पिछला चुनाव 5.48 लाख मतों के अंतर से जीती थी भाजपा
सूरत विश्व के चार सबसे तेजी से विकसित होने वाले शहरों में शामिल है। पिछले 9 लोकसभा चुनावों में भाजपा यहां से जीत रही है, इसलिए इसे भाजपा की सेफ सीट भी माना जाता है। भाजपा ने यहां अपने केन्द्रीय कपड़ा और रेल राज्य मंत्री दर्शना जरदोश का टिकट काट कर नवोदित मुकेश दलाल को टिकट दिया है। इससे पहले दलाल सूरत महानगर पालिका में कॉरपोरेटर थे। अभी वे भाजपा शहर महामंत्री हैं।
मूल सूरती मोढ वणिक समाज से आने वाले मुकेश दलाल को इस चुनाव में कोई बड़ी चुनौती नहीं मिलने वाली है। कांग्रेस ने भी यहां से अपने एक पूर्व कॉरपोरेटर नीलेश कुंभाणी को टिकट दिया है। इससे पूर्व वे कामरेज विधानसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार थे, लेकिन उन्हें भाजपा उम्मीदवार प्रफुल पानसेरिया से हार का सामना करना पड़ा था। लगातार 9 लोकसभा चुनाव से सूरत सीट पर हार रही कांग्रेस यहां कुछ बेहतर कर पाएगी, इसकी उम्मीद कम ही है। लोगों की नजर इस बात पर टिकी है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सी आर पाटिल की घोषणा के अनुसार सभी 26 सीटों पर 5 लाख मत की मार्जिन यहां रहती है या नहीं। पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में इस सीट से भाजपा की दर्शना जरदोश ने जीत हासिल की थी। उन्होंने 795651 मत हासिल किए थे, जबकि कांग्रेस के अशोक पटेल को 247421 मत मिले थे। भाजपा ने यहां कुल मतों का 75.21 फीसदी हासिल कर अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस को 5,48,230 मतों से शिकस्त दी थी।
मोरारजी देसाई सूरत से 5 बार बने थे सांसद
भारत रत्न और देश के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई सूरत लोकसभा सीट से वर्ष 1957 से लेकर 1977 तक 5 लगातार चुनाव जीते थे। इंदिरा गांधी ने जब आपातकाल हटाकर आम चुनाव की घोषणा की तो 1977 में मोरारजी देसाई बीएसडी से चुनाव लड़े और उन्होंने कांग्रेस के जशवंतसिंह चौहाण को हराया। देश में जनता पार्टी को बहुमत मिली तो मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोरारजी देसाई ने देश के समक्ष कई चुनौतियों का डटकर सामाना किया। उन्होंने दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों के साथ संबंध को प्राथमिकता दी। पाकिस्तान के साथ भी संबंध सुधारने का प्रयास किया। वर्ष 1962 के बाद चीने के साथ भारत के संबंध बहुत खराब हो गए थे, लेकिन मोरारजी देसाई ने चीन के साथ भी सामान्य हालात बनाने में अहम भूमिका निभाई। जनता पार्टी में दोहरी सदस्यता को लेकर जनसंघ के साथ मतभेद होने के बाद 15 जुलाई 1979 को उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और इसके बाद 1980 में हुए आम चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस फिर से सत्ता में लौट आई।
काशीराम राणा ने दिलाई भाजपा को पहली जीत
वर्ष 1989 में सूरत सीट पर कांग्रेस के सी डी पटेल को हराकर काशीराम राणा ने भाजपा को पहली जीत दिलाई थी। इसके बाद वे लगातार 6 बार यहां से चुनाव जीतते रहे। 1998 में वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केन्द्रीय कपड़ा मंत्री भी बने। इस दौरान उनका टफ योजना बहुत लोकप्रिय हुआ जिसमें उद्यमियों को मशीनों के अपग्रेडेशन के लिए सरकारी राहत प्रदान की गई। बाद में वे वर्ष 2003 में केन्द्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री बने थे। उनकी पत्नी के पुष्पाबेन के नाम से सूरत में मेडिकल कॉलेज भी संचालित किया जाता है। सूरत में हवाईअड्डा बनाने में उनकी अहम भूमिका रही।
कांग्रेस ने 7 बार चुनाव जीता
सूरत लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने सबसे पहले 1951 में जीत हासिल की थी। 1951 में हुए लोकसभा चुनाव में सूरत में 2 लोकसभा सीटों का समावेश था। सूरत-2 लोकसभा सीट पर वर्ष 1951 में कांग्रेस के बहादुरभाई पटेल चुनाव लड़े थे। वहीं सूरत-1 पर वर्ष 1951 में कनैयालाला देसाई चुनाव लड़े थे। कांग्रेस के दोनों उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल हुए थे। इसके बाद वर्ष 1957, 1962 और 1967 में मोरारजी देसाई कांग्रेस की टिकट पर सूरत से चुनाव लड़े और विजेता हुए। इसके बाद छगनभाई पटेल कांग्रेस की टिकट पर दो बार सांसद बने।
17 चुनावों में कांग्रेस 6 और भाजपा 9 बार जीती
1951 कनैयालाल देसाई (कांग्रेस, सूरत-1), 1951 बहादुरभाई पटेल (कांग्रेस, सूरत-2), 1957 मोरारजी देसाई (कांग्रेस), 1962 मोरारजी देसाई (कांग्रेस), 1967 मोरारजी देसाई (कांग्रेस), 1971 मोरारजी देसाई (कांग्रेस), 1977 मोरारजी देसाई (बीएलडी), 1980 छगनभाई पटेल (कांग्रेस), 1984 छगनभाई पटेल (कांग्रेस), 1989 काशीराम राणा (भाजपा), 1991 काशीराम राणा (भाजपा), 1996 काशीराम राणा (भाजपा), 1998 काशीराम राणा (भाजपा), 1999 काशीराम राणा (भाजपा), 2004 काशीराम राणा (भाजपा), 2009 दर्शनाबेन जरदोश (भाजपा), 2014 दर्शनाबेन जरदोश (भाजपा), 2019 दर्शनाबेन जरदोश (भाजपा)।