एएसआई का खुदाई अभियान जारी, भीमबेटका में मिल रहे हैं साक्ष्य
भीमबेटका शैलाश्रय की उम्र जानने के साथ मिलेगी मानव जीवन के शुरुआती दिनों की जानकारी
भोपाल, 17 फरवरी। भीमबेटका (भीमबैठका) गुफाओं को लेकर इसकी खोज करनेवाले विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के पुरातत्ववेता डॉ. विष्णु वाकणकर ने स्वीकार किया था कि वे परंपरागत मार्ग से बहुत दूर भटक कर इस प्रागैतिहासिक खजाने के बीच में पहुंच गए थे। यह उनकी खोजी जिज्ञासा कहिए या उनके पुरातत्वेता होने का धर्म कि उन्होंने 1957 में इस स्थान की न सिर्फ खोज की बल्कि यथोचित समय में उत्खननों से पूर्व-पुरापाषाण काल से लेकर आरंभिक मध्ययुगीन काल तक के अवशेष यहां से प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। इस क्षेत्र का महत्व कितना अधिक है वह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के 1999 में इसके राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित करने और जुलाई 2003 में यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित कर देने से समझा जा सकता है।
अभी तक की तमाम खोज मनुष्य जीवन के आरंभ को लेकर हुई हैं, उनमें ”मानवशास्त्र” के अनुसार सबसे पहली मानव हड्डियाँ ”इथियोपिया में पाए गए ओमो वन हड्डियां” हैं। दशकों से, इनकी सटीक आयु पर बहस चल रही है और जो निष्कर्ष अभी तक का है उसके अनुसार वे लगभग 233,000 वर्ष पुरानी हैं। एक थ्योरी आधुनिक मानव, होमो सेपियन्स को लेकर 3.5 लाख साल पहले अफ्रीका में उत्पन्न होने की है।
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया का पहला मानव एक उत्परिवर्तन के कारण उत्पन्न हुआ था। इस उत्परिवर्तन ने मानव को अन्य प्राइमेट्स से अलग करने में मदद की, जैसे कि कान की संरचना में बदलाव, बड़े मस्तिष्क और सीधे चलने की क्षमता। दूसरे वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया का पहला मानव कई प्राइमेट्स के बीच लंबी अवधि के प्रजनन के कारण उत्पन्न हुआ था। स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुसार इंसान का जन्म पृथ्वी पर सबसे पहले हिमालय की तलहटी में स्थित घाटियों में हुआ और वो स्थल तिब्बत, उत्तराखंड, हिमाचल आदि के आसपास का होना चाहिए।
भीमबेटका की नई खोज सामने लाएगी मानव सभ्यता के नए प्रमाण
दरअसल, दुनिया का पहला मानव कैसे पैदा हुआ और किसने पैदा किया, इस बारे में कोई निश्चित जवाब नहीं है। यह एक ऐसा रहस्य है जिसे वैज्ञानिक आज भी सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं और इसे वे सुलझाते हुए झारखण्ड के सिंहभूम जिले तक पहुंच गए। यह क्षेत्र उत्तर में जमशेदपुर से लेकर दक्षिण में महागिरी तक पूर्व में ओडिशा के सिमलीपाल से पश्चिम में वीर टोला तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र को हम सिंहभूम क्रेटान या महाद्वीप कहते हैं।
शोध से यह प्रमाणित हो चुका है कि झारखंड में सिंहभूम जिला समुद्र से बाहर आने वाला दुनिया का पहला जमीनी हिस्सा है। सिंहभूम 320 करोड़ साल पहले बना था। इसका मतलब यह हुआ कि आज से 320 करोड़ साल पहले यह हिस्सा एक भूखंड के रूप में समुद्र की सतह से ऊपर था। अब तक माना जाता रहा है कि अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के क्षेत्र सबसे पहले समुद्र से बाहर निकले लेकिन सिंहभूम क्षेत्र उनसे भी 20 करोड़ साल पहले बाहर आया है, इसी समय की गुफाएं हैं भीमबेटका की। जहां मिल रहे शैलाश्रय यह बता रहे हैं कि मानव सभ्यता कम से कम आज से 40 लाख साल पहले यहां विकसित रही है। यानी कि ये नई खोज इस बात की ओर भी इशारा कर रही है कि मध्यप्रदेश से मानव सभ्यता का विकास होकर भविष्य में संभवत: भारत के अन्य हिस्सों में फैली या यह वह समय था जब एक साथ कई जगह मानव सभ्यता अपने विकास को प्राप्त कर रही थी।
13 पुरातत्वविदों की टीम एकत्र कर रही नवीन तथ्यों को
रायसेन जिले में स्थित भीमबेटका शैलाश्रय को लेकर समय-समय पर अलग-अलग तथ्य सामने आते रहे हैं, पहले बताया गया कि यह 30 हजार साल पुराने हैं, फिर कहा गया कि यह विश्व का सबसे पुराना पुरातात्विक स्थल इसलिए भी है क्योंकि यहां पर शैलाश्रय का निर्माण कम से कम 54 करोड़ साल पहले हुआ था। शैलाश्रय यानी पत्थरों की ऐसी गुफा जिसमें मानव रुकते आए हैं। लेकिन अब फिर से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने यहां अब्सोल्यूट डेटिंग जानने के लिए एक नई परियोजना शुरू की है। जिसे स्थानीय स्तर पर एएसआई के असिस्टेंट आर्कियोलॉजिस्ट टीकम तंवर लीड कर रहे हैं और व्यापक तौर पर इस पूरे परिक्षेत्र को भोपाल सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ. मनोज कुमार कुर्मी 13 पुरातत्वविदों को अपना नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं। भीमबेटिका में इन नवीनतम् अध्ययन के लिए एक नई साइट को चुना गया है, जिसे कि सेक्टर नंबर बी-9 नाम दिया गया है।
भीमबेटका में अब तक हुए 750 शैलाश्रय ज्ञात
मनोज कुमार कुर्मी का कहना है कि भीमबेटका में 750 शैलाश्रय ज्ञात हैं। हमारी टीम यहां एब्सोल्यूट डेटिंग कर रही है। इससे पहले तक कार्बन डेटिंग से यह पता लगाया जा चुका है कि शैलाश्रय पर पेंटिंग मानव द्वारा कितने हजार साल पूर्व में बनाई जा चुकी हैं, किंतु अब यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि इंसानों की गतिविधियां इस क्षेत्र में कितने हजार साल पूर्व आरंभ हो गई थीं। हमारी टीम यहां एब्सोल्यूट डेटिंग में माइक्रो कंटूरिंग, ले आउटिंग, फोटोग्राफी और स्क्रिप्टिंग के माध्यम से सही तथ्यों का पता लगा रही है, इसके लिए बहुत धैर्य पूर्वक कार्य किया जा रहा है। क्योंकि एब्सोल्यूट डेटिंग करते वक्त यह सावधानी रखनी होती है कि नमूनों पर प्रकाश न पड़े। इसी कारण से इस प्रोजेक्ट को पूरा होने में अभी लम्बा समय लगेगा। यह परियोजना भूवैज्ञानिक और पुरातात्विक दोनों दृष्टिकोणों से इस वैश्विक धरोहर की उम्र तय करने की पहल है।
सिंहभूम जितनी पुरानी है भीमबेटका की चट्टानें, 40 लाख साल पहले मानव आ गया था यहां रहने
डॉ. मनोज कुमार ने बताया ”यहां खुदाई पिछले माह से शुरू है, धरती को किताब की तरह पढ़ना होता है, इसके लिए पहले ब्रश करते हैं, फिर अध्ययन करते हैं। अध्ययन के निष्कर्षों को लिपिबद्ध किया जाता है, इस तरह से परत दर परत यहां बहुत ही बारीकी से कार्य किया जा रहा है।” उन्होंने जानकारी दी कि यहां की चट्टानें सिंहभूम जितनी ही पुरानी है और इसलिए सभ्यता के विकास की पुरा अवस्था के संकेत भी यहां से मिले हैं। इन शैल आश्रयों का निर्माण जब मानव इस धरती पर प्रकट नहीं हुए थे, तब की हैं। अत: कहा जा सकता है कि लगभग 40 लाख वर्ष पहले प्रागैतिहासिक मानव ने इन आश्रय स्थलों की खोज की और इन्हें अपना घर बनाया होगा। वे कहते हैं कि अध्ययन के अंतिम निष्कर्ष तक पहुंचने तक हो सकता है यह मानव आश्रय स्थल का साल और अधिक पीछे तक चला जाए।
डॉ. मनोज कुमार कुर्मी का कहना यह भी है कि हमारा अध्ययन यहां पाई जा रही कलाकृतियों और पर्यावरणीय तथ्यों की मदद से तत्कालीन समय में मनुष्यों की प्रकृति व पारिस्थितिकी के बीच के अंतस्संबंधों को समझने का भी प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि अब पता चल जाएगा कि वास्तव में शैलाश्रय कितने पुराने हैं। अब यह तय हो जाएगा कि आदिमानव यहां सबसे पहले कब रुके थे। इंतजार इस खोज के पूरे होने का है, इसके साथ ही यह भी सामने आ जाएगा कि मध्यप्रदेश का भोपाल संभागीय क्षेत्र आदिमानव का आदि निवास स्थल भी है, जहां से मानवीय सभ्यता और संस्कृति का विकास होकर पृथ्वी के सुदूर कोने तक पहुंचा।