
75 साल, 25 मुख्यमंत्री, नीतीश ने तोड़ा बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह का रिकॉर्ड
पटना, 20 नवम्बर। बिहार की राजनीति पिछले साढ़े सात दशकों की लंबी राजनीतिक यात्रा और सत्ता परिवर्तन की कहानी को समेटे हुए है। 1946 से शुरू हुई मुख्यमंत्री पद की यह यात्रा कई उतार-चढ़ाव, प्रयोगों, सामाजिक आंदोलनों और विकास मॉडल का गवाह रही है। शुरुआती दशकों में कांग्रेस का प्रभुत्व, 90 का सामाजिक न्याय आंदोलन और 2005 के बाद का सुशासन मॉडल—इन तीनों ने राज्य की राजनीतिक दिशा तय की।
शुरुआत श्रीकृष्ण सिंह से : स्थिरता का स्वर्णकाल
बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह (1946–1961) को आधुनिक बिहार का निर्माता माना जाता है। लगभग 14 वर्ष 9 माह के उनके कार्यकाल में उद्योग, शिक्षा, प्रशासन और बड़े आर्थिक सुधारों की मजबूती से नींव रखी गई। यह दौर राजनीतिक स्थिरता का स्वर्णकाल माना जाता है।
1960–80 का दौर : सत्ता परिवर्तन और अस्थिरता
इसके बाद के दो-तीन दशक लगातार सत्ता संघर्ष, अल्पकालिक सरकारों और बदलते समीकरणों के कारण अस्थिर रहे। इस दौरान कई मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल कुछ महीनों से लेकर एक-दो वर्ष तक ही रहा—
दीप नारायण सिंह, कृष्ण बल्लभ सहाय, महामाया प्रसाद सिन्हा, कर्पूरी ठाकुर, अब्दुल गफूर, जगन्नाथ मिश्रा, रामसुंदर दास, चंद्रशेखर सिंह, बिंदेश्वरी दुबे, भगवत झा आजाद और एस.एन. सिंह ने अलग-अलग चरणों में सत्ता संभाली, लेकिन राजनीतिक खींचतान जारी रही।
जातीय राजनीति और केंद्र-राज्य संबंधों में टकराव इस दौर की प्रमुख विशेषताएँ रहीं।
1990–2005 : लालू प्रसाद और सामाजिक न्याय का युग
1990 में लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही बिहार की राजनीति नए मोड़ पर आ गई। सामाजिक न्याय का आंदोलन, एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण और नये राजनीतिक समीकरणों ने राज्य की सत्ता संरचना को पूरी तरह बदल दिया।
लालू लगभग 7 वर्ष 4 महीने मुख्यमंत्री रहे, जिसके बाद राबड़ी देवी ने 1997 से 2005 तक सत्ता संभाली। यह पूरा दौर आरजेडी के राजनीतिक दबदबे और नए सामाजिक समीकरणों के उदय का प्रतीक माना जाता है।
2005 के बाद : नीतीश कुमार का ‘विकास और स्थिर शासन’ मॉडल
नीतीश कुमार 2005 में सत्ता में आए और बिहार की राजनीति में सबसे स्थायित्वपूर्ण और प्रभावशाली अध्याय लिख दिया।
वे पिछले 20 वर्षों में 7 बार मुख्यमंत्री रहे और कुल मिलाकर 18 वर्ष से अधिक समय तक सत्ता संभालकर बिहार के सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले मुख्यमंत्री बन गए।
उनके शासन की मुख्य विशेषताएँ—
सुशासन और कानून-व्यवस्था में सुधार
सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा ढाँचों का विस्तार
गठबंधन राजनीति का अद्वितीय प्रबंधन
हर राजनीतिक परिस्थिति में खुद को सत्ता समीकरण के केंद्र में बनाए रखना
2015–17 का महागठबंधन, फिर भाजपा संग वापसी, 2022 में पुनः पलटवार और 2024 में दोबारा एनडीए—हर बदलाव के केंद्र में नीतीश ही रहे।
तीन चेहरे, तीन युग — बिहार की राजनीति की धुरी
1. श्रीकृष्ण सिंह : स्थापना और स्थिरता का दौर
लंबा कार्यकाल और ठोस प्रशासनिक नींव
उद्योग एवं शिक्षा में बड़े सुधार
2. लालू प्रसाद यादव : सामाजिक न्याय का दौर
पिछड़े वर्गों के राजनीतिक उभार का युग
एमवाई समीकरण और नई राजनीतिक संरचना
3. नीतीश कुमार : विकास और सुशासन का दौर
सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री
गठबंधन राजनीति में दक्षता
बुनियादी ढाँचा एवं प्रशासनिक सुधार
2025 में फिर सत्ता में नीतीश : प्रासंगिकता कायम
2025 में एनडीए के साथ सत्ता में वापसी ने यह स्पष्ट कर दिया कि नीतीश कुमार की राजनीतिक प्रासंगिकता अभी खत्म नहीं हुई है। राज्य के विकास, शासन और संतुलन की हर चर्चा उनके बिना अधूरी रहती है।
बिहार का मुख्यमंत्री इतिहास केवल पदों और तिथियों की सूची नहीं, बल्कि वह सामाजिक, राजनीतिक और जातीय संघर्षों का आईना है जिसने राज्य की दिशा तय की।
श्रीकृष्ण सिंह ने नींव डाली, लालू प्रसाद ने सामाजिक ढांचा बदला और नीतीश कुमार ने स्थिर एवं दीर्घकालिक शासन का नया मॉडल प्रस्तुत किया।
इन तीनों युगों ने मिलकर बिहार की राजनीति का संपूर्ण और जीवंत इतिहास रचा है।







