कोलकाता, 22 फरवरी । पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। दक्षिण 24 परगना के चंपाहाटी विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सूची में कथित रूप से चार हजार फर्जी वोटरों के नाम शामिल होने का मामला सामने आया है। इस मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस  और भारतीय जनता पार्टी  के बीच तीखी बयानबाजी शुरू हो गई है।

तृणमूल ने इसे बीजेपी की साजिश करार दिया है, जबकि बीजेपी का दावा है कि सत्ताधारी दल खुद इस धांधली में शामिल है।

जानकारी के मुताबिक, 2023 के पंचायत चुनाव में चंपाहाटी विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सूची में 18 हजार 200 नाम थे, लेकिन इस बार यह संख्या बढ़कर 22 हजार 400 हो गई। यानी हर बूथ पर औसतन 300 से 400 नए वोटर जोड़ दिए गए। खास बात यह है कि नए नामों में अधिकांश मतदाता मुर्शिदाबाद, मालदा और सिलीगुड़ी से जुड़े हुए हैं। यहां तक कि एक-एक फोन नंबर पर 4-5 लोगों के नाम दर्ज पाए गए हैं। पंजीकरण की जांच के दौरान इस गड़बड़ी का खुलासा हुआ, जिसके बाद बीडीओ कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई गई है।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही चुनाव आयोग और बीजेपी पर फर्जी वोटरों के नाम जोड़ने का आरोप लगा चुकी हैं। हाल ही में उन्होंने कहा था, “स्थानीय लोगों की शिकायत के बावजूद कई जगहों पर बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) मृत व्यक्तियों के नाम मतदाता सूची से नहीं हटा रहे हैं। कई लोग वर्षों से क्षेत्र में नहीं रह रहे, लेकिन उनके नाम अब भी सूची में बने हुए हैं।” ममता ने महाराष्ट्र और दिल्ली के चुनावों का जिक्र करते हुए आरोप लगाया था कि बीजेपी बिहार-उत्तर प्रदेश के लोगों के नाम मतदाता सूची में ऑनलाइन जोड़ रही है और चुनाव आयोग पर इसका नियंत्रण कर रही है। अब चंपाहाटी में सामने आए इस मामले को टीएमसी उनके आरोपों की पुष्टि के रूप में देख रही है।

टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “असल में यह बीजेपी की साजिश है। चुनाव आयोग की मिलीभगत से बाहरी लोगों के नाम जोड़े जा रहे हैं। फिजिकल वेरिफिकेशन (भौतिक सत्यापन) बंद कर ऑनलाइन पंजीकरण कराया जा रहा है।” उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार इस षड्यंत्र को उजागर करने के लिए सतर्क है और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अधिकारियों को कड़ी निगरानी रखने का निर्देश दिया है।

वहीं, बीजेपी प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद शमिक भट्टाचार्य ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा, “मतदाता सूची में नाम जोड़ने का काम राज्य के अधिकारी ही करते हैं, जो तृणमूल सरकार के अधीन हैं। असल में तृणमूल खुद फर्जी वोटरों को सूची में शामिल कर चुनावी फायदा उठाना चाहती है।”