-चूल्हे पर पक रहा था चावल लेकिन जान बचाने के लिए एक कपड़ा लेकर नदी में कूदना पड़ा

कोलकाता, 21 अप्रैल । पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले की साम्प्रदायिक हिंसा ने सिर्फ दो लोगों की जान नहीं ली, बल्कि सैकड़ों सपनों, घरों और रिश्तों को भी बर्बाद कर दिया है। यहां बेलगाम वर्ग विशेष की भीड़ की ओर से हिंदू समुदाय के घरों पर किए गए हमले, आगजनी और तोड़फोड़ ने यहां के लोगों के सपनों को भी चकनाचूर करना शुरू कर दिया है। यहां तक कि लोग अब अपनी बेटियों की शादी भी इन गांवों में नहीं करना चाहते, जो हिंसा के चपेट में रहे हैं। बेतबोना गांव के हत्याकांड ने जहां राज्य सरकार की व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं वहीं इसने आम लोगों की ज़िंदगी में ऐसा भूचाल ला दिया है, जिसकी गूंज अब झारखंड तक पहुंच चुकी है।

इस हिंसा के बाद जिस तरह एक के बाद एक परिवार उजड़ गए, वह किसी त्रासदी से कम नहीं। एक ऐसे ही मंजर की दास्ता सुनने काे मिली जहां मां की आंखों में आंसू थे, जब उसने बहुत भरे मन से बताया कि उसके बेटे कार्तिक दास की तय शादी अब टूट चुकी है।

मौके पर पहुंची हिन्दुस्थान समाचार की टीम से हाथ जोड़कर कार्तिक की मां कहती हैं, “हां, शादी टूट गई है। झारखंड के जिस घर में शादी तय हुई थी, अब वो लोग बुरी तरह डर गए हैं। कह रहे हैं कि ऐसे अशांत गांव में बेटी नहीं देंगे। भरोसा नहीं है कि वह कितने दिन सुहागन और उसकी आबरू सलामत रहेंगी।”

इस मां की आवाज में दर्द साफ झलक रहा था। उन्होंने बताया कि शादी के लिए पंडाल बुक हो चुका था। बैंड-बाजे काे ऑर्डर दिया जा चुका था, शादी के कार्ड छप चुके थे। लेकिन फिर दुल्हन के पिता गांव आकर बोले, “नहीं… अब यहां शादी नहीं होगी। आप लोगों के गांव में दंगे हो रहे हैं।” लड़की के पिता ने कहा, “दामाद की जिंदगी का कोई भरोसा नहीं। बेटी की शादी और आबरू बचेगी, इसका भी भरोसा नहीं। शादी बिल्कुल नहीं करेंगे”

“एक कपड़े में जान बचाकर भागे…”कार्तिक दास का ही नहीं, बेतबोना गांव के दर्जनों परिवारों की हालत लगभग इसी तरह से संगीनों के साए में रही है। जिस समय हमला हुआ, एक घर में चावल पक रहे थे। लेकिन वह खाना वहीं छोड़, जान बचाने के लिए पूरे 15 लोगों को एक कपड़े में घर छोड़ना पड़ा। एक ने अपनी बेटी की शादी के लिए सालों से जोड़े हुए डेढ़ लाख रुपये के गहने और सामान खो दिए। उनके घरों पर हमले करने वाले उनके पड़ोसी मुस्लिम समुदाय की भीड़ ने घरों में घुसकर हर कीमती चीज उठा ले गए। कुछ परिवार ऐसे थे जिन्हें नदी पार कर, बच्चों को गोद में उठाकर, जान हथेली पर रखकर मालदा के वैष्णवनगर में शरण लेनी पड़ी।

“पेट में लात मारी… बच्चे को लेकर भागे…”एक पीड़ित महिला ने मालदा के राहत शिविर में रोते हुए बताया, “मेरे पेट में लात मारा… बच्चे को गोद में लेकर जैसे-तैसे भागे हैं। अब क्या खाएंगे? अपने गांव लौटने में डर लग रहा है। पुलिस पर बिल्कुल भरोसा नहीं। बीएसएफ हमें कब तक बचाएगी?”

ये सिर्फ एक परिवार की कहानी नहीं, ऐसी कई कहानियां हैं जो मुर्शिदाबाद के बेतबोना गांव से पलायन करने की मजबूरी समेटे हुए हैं। खुद की ही ज़मीन पर अब ये लोग बेघर हैं, निर्वासित हैं।

परिवार, सपने और सम्मान—सब कुछ पीछे छूट गयावैष्णवनगर के परलालपुर हाई स्कूल में बना राहत शिविर आज बेतबोना के दर्जनों लोगों की शरणस्थली बन गया है। यहां रह रहे प्रामाणिक परिवार के 15 सदस्य एक ही कमरे में किसी तरह जी रहे हैं। वहीं बानवासी मंडल की तीन बेटियों समेत नौ सदस्य एक साथ खौफ और चिंता के बीच जिंदगी बसर कर रहे हैं। उनके चेहरे पर एक ही सवाल है — क्या हम फिर कभी अपने घर लौट कर बिना डर के जी पाएंगे?

मुर्शिदाबाद की यह हिंसा एक प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि मानवीय त्रासदी बन चुकी है जिसमें न सिर्फ खून बहा, बल्कि भरोसा, रिश्ते और भविष्य भी जलकर राख हो गया है। ——————