ब्रह्मा कुमारी संगीता

आज भारत पतित और दुःखी है। यही भारत आदिकाल में पावन, सुखी व वैभवशाली था। सृष्टि की आदि काल में सतयुग था। श्री लक्ष्मी व श्री नारायण के दैवीय दुनिया थी। शस्त्रों में है, मनुष्य को देवता बनाने तथा कलयुग को सतयुग में बदलने वाला निराकार परमात्मा है, जो सर्व आत्माओं के रुहानी पिता है। भारत में, शिव जयंती के बाद गीता जयंती भी मनाई जाती है। गीता जयंती से संबंधित है श्री कृष्ण जयंती, जिससे श्रीमद्भगवद्गीता व महाभारत युद्ध का भी सम्बन्ध है। परमात्मा के गीता वचन अनुसार इस महाभारी लड़ाई से आसुरी तत्वों का नाश और दैवी संपदा यानी देवी-देवता धर्म की पुनः स्थापना होती है। महाभारत की लड़ाई के बाद यादव कुल विनाश का भी प्रसंग आता है। कहा गया है, यादवों ने मूसल निकाली और आपस में लड़ मरे।

शिव जयंती ही महाशिवरात्रि है। जो की कलयुगी आसुरी तत्वों का महाविनाश व महापरिवर्तन काल है, जिसके उपरांत सतयुगी दैवी संपदा का पुनः स्थापना, स्वर्णिम समय व शुभ सवेरा आता है। शिव पुराण में स्वयं स्वयंभू कहते हैं, ‘ज्योतिर्लिंगम स्वरूपम अहम’। अर्थात, शिव परमात्मा का सत्य स्वरूप ज्योति स्वरूप है। वे निराकार है। साकार शरीर धारी देवी-देवताओं को भी रचने वाले वे सर्वोच्च रचयिता है। भारत के प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंग धाम ज्योति स्वरूप निराकार शिव के भारत में दिव्य अवतरण के यादगार तीर्थस्थल हैं। शिवरात्रि के दिनों में सोमनाथ से लेकर वैद्यनाथ तथा केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम तक सभी ज्योति धामों में स्थापित शिव लिंग प्रतिमाओं की विशेष पूजा, अर्चना व जलाभिषेक होता है।

देखा जाए तो शिव लिंग सूक्ष्म ज्योर्तिलिंग की स्थूल प्रारूप हैं जिनके ऊपर गंगा जल, दूध, फल, फूल आदि चढ़ाए जाते हैं। ज्योर्तिलिंग वास्तव में, दिव्य ज्योति बिंदु निराकार परमात्मा शिव का सत्य स्वरूप है। महाशिवरात्रि असल में, ज्योति स्वरूप परमात्मा शिव का सृष्टि पर दिव्य अवतरण की यादगार उत्सव है। अकसर पूजन-वंदन के समय शिव परमात्माएं नमः कहा जता है। जबकि ब्रह्मा, विष्णु व शंकर को देवताय नमः कहकर पुकारा जाता है। भारत में तैंतीस कोटि देवी-देवताओं का गायन है, जबकि एक ओंकार, निराकार शिव को ही परमात्मा माना जाता है। क्योंकि, शिव शब्द परमात्मा सूचक है। जैसे की शिव शब्द ‘शि’ और ‘व’ अक्षरों से बना है, जो की क्रमन्वे में ‘पाप नाशक’ और ‘मुक्तिदाता’ के द्योतक है। इसलिए शिव शब्द का अर्थ कल्याणकारी है। वही सदा मंगलकारी सदाशिव है। इसी गुण और कर्तव्य वाचक अर्थ में वे सभी देवों के देव परमात्मा शिव है।

शिव परमात्मा है तो शंकर सूक्ष्म आकारी देवता है। वे त्रिदेवों में से एक है। शंकर शब्द का अर्थ भी विनाश का पर्यायवाची है। शस्त्रों के अनुसार, परमात्मा शिव देवात्मा ब्रह्मा के द्वारा नई सतयुगी संसार की स्थापना, देवात्मा विष्णु के द्वारा सतयुगी दुनिया की पालना तथा देवात्मा शंकर के द्वारा इस पतित पुरानी कलयुगी पाप वा अधर्मों का विनाश कराते हैं। साकार रूप में देवता अनेक हैं, पर परमात्मा एक निराकार है।

इसलिए देवताओं को मनुष्यों के रूप में और परमात्मा को दिव्य ज्योर्तिलिंग के रूप में गायन, पूजन करते हैं। जैसा कि दिखाते हैं, रामेश्वरम में देवता श्रीराम ने असुर रावण के ऊपर विजय पाने के लिए ज्योर्तिलिंग रूपी परमात्मा शिव की पूजन किया। गोपेश्वर में देव आत्मा श्रीकृष्ण ने शिवलिंग रूपी ज्योर्तिलिंग स्वरूप शिव की पूजा की तथा दानवी तत्वों का नाश किया।

शिव परमात्मा ज्ञान का सागर है। वह जब सृष्टि पर अवतरित होकर उनके साकार माध्यम प्रजापिता ब्रह्मा के मुखारबिंदु से ज्ञान सुनाया, तब सतयुगी दैवी राज्य का स्थापन हुआ। इस धरा पर वह पुनः पुनः अवतरित होते हैं, जब- जब दुनिया पावन से पतित और तमोप्रधान बन जाती है। अभी वही अति धर्म ग्लानी की समय है। मनुष्य आत्माओं को पतित से पावन बनाने तथा मानव संस्कार व संसार को दैवी वा सतयुगी बनाने के लिए शिव परमात्मा का अवतरण समय चल रहा है। महाशिवरात्रि परमात्मा का इस दिव्य कर्तव्य का यादगार पर्व है।

तो आएं, अपने को ज्योति स्वरूप आत्मा निश्चय कर उस पार ब्रह्मेश्वर दिव्य ज्योति परमात्मा शिव की अंतरमन में स्मरण करें। आत्म ज्योत की शिव परमज्योत के साथ योग से अपने पाप और विकर्मों को भस्म करें। मन ही मन अपनी अंदर की विकारों की विष को विषहरी नीलकंठ शिव परमात्मा को समर्पण करें। उनके द्वारा ब्रह्मा मुख निसृत ज्ञान अमृत का पान करें। इस मृत्यु लोक एवं आने वाली सतयुगी अमर लोक में अथाह सुख, शांति और समृद्धि की अधिकारी बने।