बोहरा समाज के धर्मगुरु ने समाजजन को दिया धर्मोपदेश, देशभर से पहुंचे लोग

उज्जैन, 11 फरवरी। तीन दिवसीय उज्जैन प्रवास पर आए दाऊदी बोहरा समाज के 53वें धर्मगुरु सैयदना डॉ मुफद्दल सैफुद्दीन साहब ने शनिवार को यहां कमरी मार्ग स्थित मजार-ए-नजमी में 40वें धर्मगुरु सैयदना हेबतुल्ला अल-मोय्यद की बरसी पर समाजजन को धर्मोपदेश दिया। उन्होंने कहा कि गलत कामों से दूर रहकर मानवता की सेवा करते रहें।

उन्होंने सैयदना हेबतुल्ला अल मोय्यद का बखान करते हुए कहा कि बड़े पैमाने पर समुदाय व समाज की भलाई के लिए अथक प्रयास किया। एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे सैयदना अल मोय्यद ने पेजयल की गंभीर समस्या के समय अनुपयोगी हो चुके कुएं की सफाई और कायाकल्प कराकर पीने का पानी उपलब्ध कराया।

धर्मगुरु के दीदार व उनके प्रवचन को सुनने के लिए देशभर से करीब 30 हजार समाजजन उज्जैन पहुंचे। आकामौला के प्रवचनों का लाइव प्रसारण शहर की सभी बोहरा मस्जिदों में किया गया। प्रत्येक मस्जिद में प्रवचन सुनने के लिए सैकड़ों लोग मौजूद थे।

सैयदना साहब सुबह उर्स की जियारत व प्रवचन के बाद शाम को कुछ समाजजन से मिलने के लिए उनके घर भी गए। वे रविवार सुबह मुफद्दल पार्क में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होंगे। इसके पश्चात सड़क मार्ग से इंदौर के लिए रवाना होंगे। इंदौर से फ्लाइट से मुंबई के लिए प्रस्थान करेंगे।

गौरतलब है कि बोहरा समाज के धर्मगुरु सैयदना डॉ मुफद्दल सैफुद्दीन मजार-ए-नजमी स्थित 40वें धर्मगुरु सैयदना हैबतुल्लाह मोअय्यद फिद्दीन के 251वें उर्स में शामिल होने के लिए गुरुवार शाम को उज्जैन पहुंचे थे। यहां उन्होंने शुक्रवार सुबह खराकुआं स्थित हसनजी बादशाह की दरगाह पर जियारत की और शाम को मजार-ए-नजमी में जियारत के बाद उर्स की मजलिस की। शनिवार को वे उर्स की धर्मविधियों के साथ विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने समाजजन को धर्मोपदेश दिया।

150 साल पुराने बागे हसन को निहारा

सैयदना डॉ मुफद्दल सैफुद्दीन हसनजी बादशाह की दरगाह पर जियारत के बाद लौटते समय दरगाह के सामने बने भवन “बागे हसन” देखकर मुग्ध हो गए। उन्होंने कुछ देर रुककर भवन को निहारा तथा खुशी जाहिर की। पूर्व पार्षद कुतुब फातेमी ने बताया कि करीब 150 साल पहले उनके परदादा ने यह मकान बनवाया था। लकड़ी और चूने से बना यह मकान बेजोड़ कारीगरी का अद्भुत नमूना है। इसकी लकड़ियों पर नायाब नक्काशी की गई है। इस भवन को बनाने में 20 साल का समय लगा था।