ओंकार समाचार
कोलकाता, 28 मार्च। कोलकाता के प्रमुख समाजसेवी एवं व्‍यवसाई श्रीनाथ बागड़ी ने देहदान के साथ ही सामाजिक कुरीतियों को मिटाने की दिशा में अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। माहेश्वरी बालिका विद्यालय के सभापति गणेश बागड़ी के पिता श्रीनाथ बागड़ी का गत 24 मार्च को 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनकी इच्‍छा के मुताबिक उनकी देह कोलकाता मेडिकल कालेज को दान कर दी गई।
श्रीनाथ बागड़ी ने अपनी अंतिम इच्‍छा में ऐसी कई परम्‍राओं का पालन नहीं करने के निर्देश दिए जो आज के समय में अप्रासंगिक हो चुकी है।उनके परिवार वालों ने उनकी इच्‍छा और उनके निर्देशों का अक्षरश: पालन किया । ‘कोलकाता-राजस्थान सांस्कृतिक विकास परिषद’ के महासचिव केशव कुमार भट्टड एवं अध्‍यक्ष प्रकाश चंद्र मूंधड़ा ने श्रीनाथ बागड़ी को श्रद्धांजलि देते हुए  कहा है कि सामाजिक रूढ़ियों में बदलाव के सूत्रधारों के रूप में उन्हें भी याद रखा जाएगा।

उन्‍होंने सन 2018 में अपनी अंतिम इच्‍छा लिखित रूप में इस प्रकार व्‍यक्‍त की।

मैं श्रीनाथ बागड़ी
उमर 86 वर्ष होशोहवास में अच्छी तरह सोच समझ कर यह निर्णय निर्देश दे रहा हूँ , जिसे मेरे उत्तराधिकारी – परिवार – संबंधी – परिचित सभी इसका आदर और कार्य पूर्ण रूप से पालन करेंगे :-
1. मैं अपनी देह मेडिकल के लिए दान कर रहा हूँ ।
2. मृत्यु समय आ गया जानकारी हो जाने पर अस्पताल नहीं ले जावेंगे , घर पर ही उचित उपचार करेंगे । मृत्यु हो जाने पर मेडिकल को खबर करेंगे वो देह के जावेंगे ।
3. अगर अस्पताल में हूँ , मृत्यु हो जावे, देह घर नहीं लाएंगे वहीं से मेडिकल वाले ख़बर करने से ले जाएँगे।
4. कोई दुख विलाप नहीं करेगा , दीर्घायु होकर जा रहा हूँ , शांति बनाये रखें , गीता , रामायण , कीर्तन वगैरह किया जावे ।
5. किसी का मुंडन नहीं करें-किया जावे ।
6. बैठक को जरूरत नहीं है , सामान्य जैसे रहते है रहेंगे , मिलने आने वालो से सामने व्यवहार करेंगे मिलेंगे ।
7. कोई मांगलिक , व्यापारिक कार्य बंद नहीं करेंगे , चालू रखेंगे ।
8. गरुड़ पुराण , १० दिन का कार्य , ११ का नारायण बलि, १२ का सेज सैया-पाग बाँधना और १२-१३ ब्राह्मण भोजन ,सामाजिक भोजन , आन दान , भूमि दान वगैरह वगैरह कोई कर्म कांड नहीं करेंगे ।
9. घर का दैनिक खाना पीना पारिवारिक जैसा होता है होता रहेगा , सामान्य करे ।
10. घर की औरत का जाति वगैरह नहीं पहनना , कोई रोक टोक नहीं करे , सामान्य जैसा रहते है रहे ।

दस्तख़त
श्रीनाथ बागड़ी
९-१-१८