पटना, 20 जनवरी । बिहार विधानसभा में चल रहे 85वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के दो दिवसीय सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विधायी निकायों की बैठकों की घटती संख्या पर चिंता व्यक्त की। साथ ही उन्होंने पीठासीन अधिकारियों से इस मुद्दे को हल करने के लिए प्रयास करने का आग्रह किया।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि विधानसभाओं की बैठकों की घटती संख्या हमारे लिए चिंता का विषय है। यह 1954 में एक चुनौती थी और यह आज भी जस की तस बनी हुई है। उन्होंने दिल्ली विधानसभा का उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली विधानसभा ने अपने पूरे पांच साल के कार्यकाल में मात्र 74 बैठकें की हैं। लोकसभा अध्यक्ष ने संसद और राज्य विधानसभाओं में योजनाबद्ध व्यवधानों की भी निंदा की और राजनीतिक दलों से सदन की गरिमा बनाए रखने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने का आग्रह किया।
ओम बिरला ने कहा कि संविधान ने सहकारी संघवाद की अवधारणा को अपनाया है। उन्होंने कहा कि देश की अधिकांश विधानसभाएं कागज रहित और डिजिटल हो गई हैं, ताकि सभी बहसों को एक मंच पर लाया जा सके। वर्ष 2025 तक सभी चीजें एक मंच पर उपलब्ध होंगी। अब समय आ गया है कि अन्य लोकतांत्रिक निकायों जैसे पंचायत राज संस्थाओं, शहरी स्थानीय निकायों और सहकारी समितियों को भी इसमें शामिल किया जाए और राज्य ऐसा कर सकते हैं।
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि विधानसभाओं को सार्थक और परिणामोन्मुखी चर्चाओं का स्थान होना चाहिए और इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को एक साथ आकर अपने-अपने दलों के लिए आचार संहिता बनानी चाहिए, ताकि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद लोगों की व्यापक भलाई के लिए अच्छी मिसाल कायम की जा सके।
बिरला ने कहा कि सदनों की गरिमा उसके सदस्यों की गरिमा पर निर्भर करती है और इससे लोकतंत्र को मजबूती मिलती है। सदस्यों के लिए क्षमता निर्माण होना चाहिए। सार्थक चर्चा के लिए अधिक जगह बनाने के लिए व्यवधानों और स्थगनों की संख्या कम की जानी चाहिए और पीठासीन अधिकारियों को सभी राजनीतिक दलों के साथ इस पर चर्चा करनी चाहिए। राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान गरिमा बनाए रखी जानी चाहिए।