स्वदेशी विनिर्माण और रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा

इन हथियारों के खरीदने से भारतीय सेना की परिचालन क्षमता बढ़ेगी

नई दिल्ली, 04 जनवरी। रक्षा में आत्मनिर्भरता को मजबूत करते हुए रक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को 697 बोगी ओपन मिलिट्री वैगन और 56 मैकेनिकल माइनफील्ड मार्किंग इक्विपमेंट मार्क II के लिए कुल 802 करोड़ के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। इन सभी सैन्य हथियारों का उत्पादन स्वदेशी उद्योग में उपकरणों और उप-प्रणाली के साथ किया जाएगा, जिससे ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण को साकार करते हुए स्वदेशी विनिर्माण और रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।

रक्षा मंत्रालय ने ज्यूपिटर वैगन्स लिमिटेड के साथ 473 करोड़ की लागत से 697 बोगी ओपन मिलिट्री (बीओएम) वैगनों की खरीद और बीईएमएल लिमिटेड के साथ 56 मैकेनिकल माइनफील्ड मार्किंग इक्विपमेंट (एमएमएमई) मार्क II की खरीद के लिए 329 करोड़ के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं। बीओएम वैगन और मैकेनिकल माइनफील्ड मार्किंग इक्विपमेंट का उत्पादन स्वदेशी निर्माताओं से प्राप्त उपकरणों और उप-प्रणाली के साथ किया जाएगा, जिससे सरकार का ‘आत्मनिर्भर भारत’ दृष्टिकोण साकार होगा। साथ ही स्वदेशी विनिर्माण और रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।

रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन (आरडीएसओ) के डिजाइन किए गए बोगी ओपन मिलिट्री (बीओएम) वैगन भारतीय सेना की इकाइयों को संगठित करने के उपयोग में आते हैं। बीओएम वैगनों का उपयोग हल्के वाहनों, आर्टिलरी गन, बीएमपी, इंजीनियरिंग उपकरण आदि को शांतिकालीन स्थानों से परिचालन क्षेत्रों तक ले जाने के लिए किया जाता है। यह क्रिटिकल रोलिंग स्टॉक किसी भी संघर्ष की स्थिति के दौरान इकाइयों और उपकरणों को परिचालन क्षेत्रों तक पहुंचाने में काम आएगा। इसके अलावा सैन्य अभ्यास के लिए एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक इकाइयों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाएगा।

रक्षा मंत्रालय के अनुसार मैकेनिकल माइनफील्ड मार्किंग इक्विपमेंट (एमएमएमई) मार्क II उपकरण उन्नत मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल सिस्टम वाले इन-सर्विस हाई मोबिलिटी वाहन पर आधारित है, जो ऑपरेशन के दौरान माइनफील्ड मार्किंग के समय को कम करेगा, जिससे भारतीय सेना की परिचालन क्षमता बढ़ेगी। दरअसल, कुछ पारंपरिक हथियारों के कन्वेंशन पर संशोधित प्रोटोकॉल-II के अनुसार सभी बारूदी सुरंगों को चिह्नित करना एक अनिवार्य आवश्यकता है, जिस पर भारत ने भी हस्ताक्षर किये हैं। एमएमएमई को न्यूनतम समय में माइनफील्ड को चिह्नित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।