उदयपुर, 10 मार्च। झीलों तालाबों का शहर बेंगलूरु दो वर्ष पूर्व बाढ़ से पीड़ित हुआ। आज वह एक बूंद पानी के लिए तरस रहा है। उससे सबक लेकर झीलों की नगरी उदयपुर को अपने जल भविष्य को बचाना होगा।

यह विचार रविवार को आयोजित झील संवाद में जल योद्धाओं ने व्यक्त किए। जल विशेषज्ञ डॉ अनिल मेहता ने कहा कि बेंगलूरु के सैंकड़ों तालाबों, जल नालों, खुले कुओं को पाट देने के कारण वहां अति पानी अथवा शून्य पानी की स्थितियां बन रही हैं। शहर की आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक गतिविधियां रुक गई हैं।

उदयपुर में पहाड़ों, जंगलों के कारण नदी-नालों की वृहद जल व्यवस्था बनी। भूजल का निरंतर प्राकृतिक पुनर्भरण होता था। अनेक छोटे तालाब-तलाइयाँ ज्यादा बरसात के वर्षों में बरसात के पानी को सहेज लेते थे। इनसे होने वाले रिचार्ज से कुओं बावड़ियों में भूजल का स्तर अच्छा बना रहता था। लेकिन, बेंगलूरु की तरह ही उदयपुर ने अपने शहरीकरण के विस्तार में पहाड़ों को काटा है, छोटे तालाबों को नष्ट किया है तथा बरसाती नालों, कुओं बावड़ियों को पाट दिया है।

मेहता ने कहा कि यदि उदयपुर ने अब भी अपने को नहीं संभाला तो आने वाले कुछ ही वर्षों में उदयपुर में भी भीषण बाढ़, भीषण सूखा यहां की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को चौपट कर देगा।

झील प्रेमी तेजशंकर पालीवाल ने कहा कि उदयपुर में भयंकर जल बर्बादी हो रही है। होटलों व रिसोर्ट में प्रति जल खपत घर के मुकाबले पांच सौ से सात सौ प्रतिशत ज्यादा है। अनियंत्रित पर्यटन से झीलों व भू जल, दोनों की गुणवत्ता में गिरावट आ गई है। समय आ गया है कि व्यक्तिगत स्वार्थ व आर्थिक लाभ से परे जाकर हम उदयपुर के सुरक्षित भविष्य पर चिंतन करें।

गांधी मानव कल्याण समिति के निदेशक नंद किशोर शर्मा ने कहा कि कुछेक बस्तियों व छोटे व्यवसाय केंद्रों को छोड़ कर हर घर, व्यवसाय स्थल, संस्थानों में गहरे ट्यूबवैल हैं। इनसे जल निकासी पर कोई प्रतिबंध नही है। इससे भू जल स्तर में गिरावट आ रही है। राज्य में भूजल दोहन नियंत्रण पर एक कठोर कानून की आवश्यकता है।

पर्यावरण प्रेमी कुशल रावल ने कहा कि हर घर, हर व्यवसाय स्थल, होटल रिजॉर्ट में जल खपत को नियंत्रित करना प्रारम्भ कर देना चाहिए। बाथ टब, शॉवर का प्रयोग न्यूनतम कर देना चाहिए। वैज्ञानिक रूप से सही वर्षा जल संरक्षण विधियों को बढ़ाना चाहिए।

वरिष्ठ नागरिक रमेश चंद्र राजपूत ने कहा कि जिस भी समाज ने जल का अपमान किया, उसे दुर्दिन देखने पड़े हैं। उन्होंने आग्रह किया कि उदयपुर जल स्रोतों व उनके कैचमेंट के प्रति सम्मान व संरक्षण का व्यहवार शुरू करे।

संवाद से पूर्व झील स्वच्छता के लिए श्रमदान भी किया गया।