कोलकाता, 18 दिसंबर । पश्चिम बंगाल की वित्तीय स्थिति पर भारतीय रिजर्व बैंक के हालिया निष्कर्षों के अनुसार, पश्चिम बंगाल स्वयं के राजस्व या सकल राज्य घरेलू उत्पाद  प्रतिशत के मामले में राष्ट्रीय औसत से पीछे है।

आरबीआई के निष्कर्ष के अनुसार, स्‍वयं के कर राजस्व और गैर-कर राजस्व दोनों मामलों में पश्चिम बंगाल राष्ट्रीय औसत से पीछे है। पश्चिम बंगाल के लिए जीएसडीपी में राज्य के स्वयं के कर राजस्व का प्रतिशत केवल पांच प्रतिशत है जो राष्ट्रीय औसत सात प्रतिशत से कम है।

पश्चिम बंगाल के संबंध में गैर-कर राजस्व के मामले में स्थिति अधिक दयनीय है। निष्कर्षों के अनुसार, पश्चिम बंगाल के जीएसडीपी में राज्य के गैर-कर राजस्व का प्रतिशत केवल 0.4 प्रतिशत है जो राष्ट्रीय औसत 1.2 प्रतिशत से कम है।

आरबीआई के निष्कर्षों के अनुसार, जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए राज्य सरकार का वर्तमान खर्च केवल दो प्रतिशत है। अर्थशास्त्रियों की राय है कि इस कारक का अनुसरण पश्चिम बंगाल में राज्य उत्पाद शुल्क पर भारी निर्भरता राज्य की अपनी कर राजस्व संरचना का नतीजा है। उनके अनुसार, किसी भी राज्य का अपना कर राजस्व घटक विनिर्माण और सेवा क्षेत्र दोनों में बड़े निवेश पर निर्भर करता है।

यह वही क्षेत्र है, जहां पश्चिम बंगाल अन्य प्रमुख राज्यों से पिछड़ा हुआ है और अर्थशास्त्रियों की राय है कि भूमि खरीद और विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) का दर्जा देने के संबंध में राज्य की आंतरिक नीतियां निवेश के मामले में बड़े पैमाने पर सूखे के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि पश्चिम बंगाल सरकार की उद्योग के लिए भूमि खरीद में राज्य की कोई भूमिका नहीं नीति के कारण विनिर्माण क्षेत्र के संचालक राज्य में निवेश करने से विमुख हो रहे हैं।

पश्चिम बंगाल में खंडित भूमि-धारण प्रकृति को ध्यान में रखते हुए किसी परियोजना के लिए एक बार में विशाल भूखंडों की आवश्यकता वाले निवेशकों के लिए राज्य के किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप के बिना भूमि खरीद के उद्देश्य से व्यक्तिगत भूमि-मालिकों के साथ बातचीत करना लगभग असंभव है। इसी तरह, अर्थशास्त्रियों का कहना है, यह राज्य में नए एसईजेड का दर्जा देने में पश्चिम बंगाल सरकार की अनिच्छा है, जिसके कारण सेवा क्षेत्र में बड़े निवेशक निवेश से कतरा रहे हैं।