ओंकार समाचार

कोलकाता, 29 दिसंबर। कोहवर लीला विवाह के समय वर-वधू की क्रीड़ा लीला है, जिसमें मनोरंजन के लिए जीत-हार का खेल खेला जाता है। जनकपुर में कोहवर के समय सखियां सीता की चरण पादुका को कपड़े में छुपा लेती है,राम से कहती है ,ये हमारी कुलदेवी है,प्रणाम कीजिए। लक्ष्मण जी रामजी से बोलते है ,भैया ये कुलदेवी नहीं है,प्रणाम मत कीजिए, मैं नहीं करूंगा।

सखियां जब भरत से प्रणाम करने के लिए बोलती है तो भरत जी दंडवत होकर प्रणाम करने लगे। भरत जी कहते हैं कि मैं जानता था कि ये कुलदेवी नहीं है,यह तो मेरी मां जानकीजी की चरण- पादुकाएं हैं।यही से भरत ने अपने जीवन का आधार पादुकाओं को बनाया। आगे चलकर राम के चरण पादुकाओं का आश्रय लेकर चौदह वर्ष तक राज्य का संचालन किया। हमें भी अपने जीवन का आधार भगवान राम के चरणों को रखना चाहिए।

राम कथा का उद्देश्य यही है कि हम धर्म के अनुरूप आचरण करे। राम कथा हमें स्वधर्म में जीना सिखाती है।ये बातें रूंगटा परिवार के तत्वावधान में स्वर्गीय मालीराम नथमल रूंगटा (पलासी वाले) की स्मृति में श्रीराम कथा पर प्रवचन करते हुए आचार्य मृदुलकांत शास्त्री ने गायत्री निवास प्रांगण में कही।

श्रद्धालुओं का स्वागत  शंकरलाल रूंगटा, प्रमोद कुमार रूंगटा,रवीन्द्रनाथ रूंगटा, पवन कुमार रूंगटा सहित अन्य सदस्यों ने किया।