एम.पी.यू.ए.टी का 17वां दीक्षांत समारोह

समारोह में कुल 42 स्वर्ण पदक किए प्रदान

प्राकृतिक खेती पर डिग्री कोर्स होगा शुरू

उदयपुर, 20 दिसम्बर। कुलाधिपति एवं प्रदेश के राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि भारत ऋषि एवं कृषि संस्कृति से ओतप्रोत राष्ट्र है। ऋषि का अर्थ है कि जो भूत, भविष्य और वर्तमान की दृष्टि रखता है और उसी के अनुरूप अपने शिष्यों में ज्ञान की ज्यांेति प्रज्जवलित करते हो। इसी प्रकार कृषि संस्कृति के अंतर्गत धरती-धन उगाने और परिश्रम के साथ जीवन यापन पर सदैव हमारी संस्कृति में जोर दिया गया है।

राज्यपाल मिश्र बुधवार को यहां विवेकानंद सभागार में आयोजित महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सत्रहवें दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। राज्यपाल ने दीक्षांत समारोह मे 864 स्नातक (बीएससी), 201 स्नातकोत्तर (एमएससी) व 74 विद्यावाचस्पति छात्र-छात्राओं को दीक्षा प्रदान की। साथ ही उपाधियां भी प्रदान की जिसमें 42 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक से नवाजा गया। राज्यपाल ने इस वर्ष का कुलाधिपति स्वर्ण पदक दीक्षा शर्मा एमएससी कृषि (सत्य विज्ञान) को प्रदान किया।

राज्यपाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि शिक्षा और कृषि पर विशेष ध्यान देकर ही हम सही मायने में राष्ट्र को समृद्ध बना सकते हैं। राष्ट्र की प्रगति का मूल आधार खाद्य और पोषण सुरक्षा ही है। हरित क्रांति और दुग्ध क्रांति के बाद देश खाद्य व पोषण सुरक्षा में आज आत्मनिर्भर जरूर बन गया है, लेकिन यह अंत नहीं है। हमे अभी विकसित भारत के स्वप्न को साकार करना है। इसके लिए हमें कृषि निर्यात को बढ़ाना होगा। यह भी ध्यान रखना होगा कि भूमि की उर्वर शक्ति और जैव विविधता पर खतरा न मंडराए।

उन्होंने कहा कि प्रति व्यक्ति खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि के उपरांत भी जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग अभी भी अल्पपोषण व कुपोषण की विपदा झेल रहा है। कृषि में आमूलचूल परिवर्तन से ही इन चुनौतियों का सामना करना संभव है। कृषि अनुसंधान व शोध में स्थानीय जरूरतों के मुताबिक सकारात्मक बदलाव हांे।

उन्होने कहा कि कृषि में महिलाओं की भुमिका आज भी महत्वपूर्ण है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के शोध से पता चलता है कि प्रमुख फसलों के उत्पादन में महिलाओ की भागीदारी 75 प्रतिशत, बागवानी में 79 प्रतिशत, फसल कटाई उपरांत कार्यों में 51 प्रतिशत तथा पशुपालन व मत्स्यपालन में 95 प्रतिशत है। इसी के मद्देनजर कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने 15 अक्टूबर को महिला कृषक दिवस मनाने की पहल की है।

इस मौके पर उन्होंने प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप को नमन करते हुए कहा कि एकलिंगजी के दीवान के रूप में यहां के महाराणाओं की परम्परा पूरे भारत में अद्भुत है। महाराणा प्रताप शौर्य और पराक्रम के साथ ही कृषि और प्रौद्योगिकी से भी निकट से जुड़े रहे हैं।

राज्यपाल ने उदाहरण देते हुए बताया कि महाराणा प्रताप के एक दरबारी पंडित थे- चक्रपाणि मिश्र। उन्होंने प्रताप के कहने पर ही पौधों और फसलों से जुड़े ज्ञान पर महत्वपूर्ण शोधपाक लेखन किया। मेवाड़ की जल संरक्षण परम्परा है, यहां के औषधीय पौधों के बारे में दुर्लभ जानकारियां चक्रपाणि मिश्र ने अपने ग्रंथ ‘विश्ववल्लम’ में निरूपित किया है। एशियन एग्री हिस्ट्री फाउण्डेशन ने इस ग्रंथ को प्रकाशित किया है। उन्होंने आह्वान किया कि इस ग्रंथ में खेती से जुड़े परम्परागत ज्ञान को विश्वविद्यालय आगे बढ़ाए।

कार्यक्रम में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के उपमहानिदेशक (कृषि शिक्षा) डॉ आर. सी. अग्रवाल ने दीक्षांत उद्बोधन देते हुए कहा कि भारतीय कृषि विविधतापूर्ण है। इसमें जलवायु, मृदा, भूगर्भीय पारिस्थितिकी व वनस्पति तंत्र सम्मिलित है जो सहस्त्राब्दियों से विकसित प्राकृतिक आवास, फसलों व पशुधन की विविधता तय करता है। भारत फसली पौधों की उत्पत्ति के विश्व के 8 केन्द्रों में से एक है। लगभग 166 फसल प्रजातियां व फसलों की 320 जंगली प्रजातियों की उत्पत्ति यहां हुई।

उन्होंने कहा कि देश में इस समय कुल 76 विश्वविद्यालय और 732 केविके हैं। आठ वर्ष पूर्व तक 23 प्रतिशत छात्राएं कृषि शिक्षा ग्रहण कर रही थी जो आज बढ़कर 50 प्रतिशत हो चुकीं हैं जो कृषि में महिलाओं की भागीदारी के अच्छे संकेत हैं। वर्ष 2040 तक 9.50 लाख कृषि स्नातकों की आवश्यकता होगी जो आज 50 फीसदी ही है।

कुलपति अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि विगत एक वर्ष में विश्वविद्यालय ने अनुसंधान के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में अनेक उपलब्धियां हासिल की है। विराट परिसर श्रेष्ठ अकादमिक स्तर व शैक्षणिक गुणवŸाा के कारण आज यह विश्वविद्यालय की भूमिका अद्वितीय है। डॉ. कर्नाटक ने बताया कि प्राकृतिक खेती पर आगामी वर्ष से विश्ववि़द्यालय कृषि स्नातक कार्यक्रम का एक कोर्स चलाएगा। साथ ही एक प्रथम डिग्री कार्यक्रम आरंभ करने का भी मथंन चल रहा है।

डॉ. कर्नाटक ने प्रमुख उपलब्धियां गिनाते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पहली बार अभिन्न तकनीक विकसित कर विगत एक वर्ष में 12 भारतीय व विदेशी पेटेन्ट हासिल किए। इनमें बायोचार निर्माण, सौर ऊर्जा चलित आइसक्रीम गाड़ी का निर्माण, कृषि अवशेषों से हाइड्रोजन युक्त सिनगैस का निर्माण व स्वचालित सब्जी पौधरोपण तकनीक आदि शामिल हैं।