
कोलकाता 1अगस्त। पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज की साहित्य संस्कृति उप-समिति ने प्रेमचंद की 145वीं जयंती के उपलक्ष्य में ” ‘रंगभूमि’ उपन्यास के 100 साल “विषय पर प्रेमचंद लाइब्रेरी, कोलकाता में संगोष्ठी का आयोजन किया । साहित्य संस्कृति उप समिति के अध्यक्ष केशव भट्टड़ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
राजीव पांडेय ने कहा कि भयभीत न होना सूरदास की शक्ति है। सूरदास अपना प्रतिवाद अपनी व्यक्तिगत सीमा में करता है। सूरदास की जमीन का उपयोग पूरा समाज करता है।उसका कोई व्यक्तिगत हित जमीन से नहीं जुड़ा है।जान सेवक की पत्नी धार्मिक है लेकिन वह दूसरे धर्मों से चिढ़ती है। स्त्री पात्रों में सबसे दृढ़ चरित्र सोफिया का है।वह तार्किक स्वभाव की है।वह धार्मिक आस्थाओं पर प्रश्न करती है।विनय समाजसेवी है।जन आंदोलन से सामना होने पर महेंद्र प्रताप सिंह का असली चेहरा सामने आता है।जानसेवक सूरदास की जमीन पर सिगरेट का कारखाना बनाने के लिए जमीन पर कब्जा करने खुद नहीं जाता,वह सरकारी संस्थाओं को आगे कर देता है। पुलिस को आगे करता है।100 साल बाद भी आज के भारत में यह प्रासंगिक है। सौ साल पहले प्रेमचंद ने धर्म पर जो विचार व्यक्त किए हैं,आज उपन्यास प्रकाशित होने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता।
श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा कि आज पूरी दुनिया जिन समस्याओं से जूझ रही है,उसका वर्णन इस उपन्यास में है।
अध्यक्ष केशव भट्टड़ ने कहा कि हाशिए पर खड़े आम आदमी के प्रतिनिधि पात्र सूरदास को प्रेमचंद ने नायक बनाया है। “रंगभूमि” शब्द रंगमंच से प्रेरित है, जो जीवन के विविध रंगों और नाटकीयता को दर्शाता है। उपन्यास में सूरदास जैसे पात्रों के माध्यम से प्रेमचंद सामाजिक, आर्थिक और नैतिक संघर्षों को चित्रित करते हैं। प्रेमचंद के उपन्यास ‘गोदान’ का मंचन हुआ है लेकिन’ रंगभूमि’ का मंचन नहीं हुआ है। ” उपन्यास में प्रथम विश्व युद्ध का जिक्र आता है। उपन्यास में हिंदू, इस्लाम और ईसाई धर्म के मानने वालों में कट्टरता नहीं है, संवाद है। सौ साल बाद भी आधारभूत व्यवस्था का ढांचा वही है। जनता राजाओं, शासकों की सुख सुविधाओं का चारा है। सौ साल पहले सत्ता का जो चरित्र था,आज भी वही है। सूरदास साहित्य के माध्यम से अपनी लड़ाई लड़ रहा है, वह अपने गाने से प्रतिवाद व्यक्त करता है। ‘रंगभूमि’ आस्था की भूमि को बदलने का प्रयास है।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए सुमित जायसवाल ने कहा कि ‘रंगभूमि’ उपन्यास को पढ़ने के पहले कोई उपन्यास नहीं पढ़ा था। सूरदास अपनी जमीन के लिए मरते दम तक लड़ता है। सूरदास अपनी जमीन को पुरखों की यादगार समझता है। सूरदास हिंदुस्तान के उन किसानों में है जिनमें रचने की, निर्माण करने की तीव्र आकांक्षा है। साहित्य संस्कृति उप समिति के संयुक्त संयोजक अभिषेक कोहार ने संचालन किया।