
नई दिल्ली, 29 जुलाई । कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने मंगलवार को पहलगाम हमले को केन्द्र सरकार की बड़ी विफलता बताया और कहा कि गृहमंत्री और केन्द्र सरकार को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्होंने कटाक्ष किया कि नेतृत्व श्रेय लेने से नहीं बल्कि जिम्मेदारी लेने से बनता है। देश को प्रतिशोध के साथ ही सभी के प्राणों की रक्षा का प्रण चाहिए। सेना की शक्ति के साथ ही सरकार की सच्चाई भी चाहिए।
प्रियंका गांधी ने लोकसभा में पहलगाम में आतंकवादी हमले के जवाब में भारत के सशक्त, सफल और निर्णायक ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर विशेष चर्चा में आज भाग लिया। मुंबई हमलों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि आतंकी घटना के बाद महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री और केन्द्रीय गृहमंत्री ने इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने कहा कि गृहमंत्री को पहलगाम हमले की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्होंने केन्द्र सरकार से अपनी जिम्मेदारियों और देश को सच बताने के कर्तव्य से भागने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “उपलब्धियों का श्रेय लेने से नेतृत्व मजबूत नहीं होता, बल्कि सफलता और विफलता दोनों की जिम्मेदारी लेने से होता है। यह सोने का नहीं बल्कि कांटों का ताज है।”
प्रियंका ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी सफल कूटनीति से अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन का मुकाबला किया गया। पाकिस्तान का विभाजन कर, बांग्लादेश बनाया और एक लाख पाकिस्तानी सैनिकों का आत्मसमर्पण करवाया, लेकिन इंदिरा गांधी ने कभी इसका श्रेय लेने की कोशिश नहीं की। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार हमेशा सवालों से बचने की कोशिश करती है। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर में हमारे जहाजों को हुए नुकसान के बारे में सरकार को साफ-साफ जवाब देना चाहिए।
प्रियंका ने गृहमंत्री अमित शाह के बटला हाउस मुठभेड़ पर सोनिया गांधी को लेकर की गई टिप्पणियों का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि सदन में उनकी मां के आंसुओं की बात की गयी। उनकी मां के आंसू तब गिरे, जब उनके पति को आतंकवादियों ने शहीद किया, जब वे सिर्फ 44 साल की थीं। आज मैं इस सदन में खड़ी होकर उन 26 लोगों की बात इसलिए कर रही हूं, क्योंकि मैं उनका दर्द जानती हूं और उसे महसूस करती हूं।
कांग्रेस सदस्य प्रियंका ने कहा कि सरकार कह रही है कि ऑपरेशन सिंदूर का मकसद पाकिस्तान को सबक सिखाना था। वे मानती हैं कि शायद ये मकसद अधूरा है। यह हमारी कूटनीतिक विफलता है। इसका सबूत है पाकिस्तानी जनरल का अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ लंच और पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र की ‘आतंकवाद विरोधी समिति’ का अध्यक्ष चुना जाना।