गुरु पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर परमहंस आश्रम में हुआ आध्यात्मिक सत्संग

मीरजापुर, 9 जुलाई । परमहंस आश्रम सक्तेशगढ़ में गुरु पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर हुए एक आध्यात्मिक कार्यक्रम में स्वामी अड़गड़ानंद महाराज ने श्रीमद्भगवद्गीता की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गीता केवल हाथ में रख लेने से समाधान नहीं होगा, बल्कि इसका प्रचार-प्रसार कर इसे जन-जन तक भली प्रकार पहुंचाना होगा।

स्वामी ने कहा कि गीता कोई साधारण ग्रंथ नहीं, बल्कि यह सृष्टि का आदि धर्मशास्त्र है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने सृष्टि के प्रारंभ में सूर्य को बताया, सूर्य ने मनु को, मनु ने इक्ष्वाकु को और इक्ष्वाकु से यह ज्ञान राजर्षियों को प्राप्त हुआ। उन्होंने बताया कि यह दिव्य योग कालांतर में लुप्त हो गया था, जिसे श्रीकृष्ण ने पुनः अर्जुन को सुनाकर प्रकट किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि गीता के अतिरिक्त कोई अन्य विधि जीवन में स्थायी सुख, सिद्धि और परमगति नहीं दे सकती। जो लोग इसकी विधियों को त्याग कर अन्य साधनों में उलझे हैं, वे भ्रमित हैं। धर्मशास्त्र गीता ही जीवन में कर्तव्य और अकर्तव्य की स्पष्ट दिशा देती है।

स्वामी अड़गड़ानंद ने कहा कि यदि गीता को केवल अनुशंसा रूप में प्रचारित किया जाएगा तो उसका उद्देश्य कभी पूर्ण नहीं होगा। गीता को जनजाति, आदिवासी, दलित, वनवासी, गांव, नगर, शहर हर वर्ग तक पहुंचाने की जरूरत है, ताकि जब कोई भी इसे पढ़े तो उसे लगे कि यह उसके हृदय की बात कही गई है। उन्होंने संतों की परंपरा की ओर संकेत करते हुए कहा कि देश और विदेशों में आज भी संत विभूतियां गीता का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। यही परंपरा आगे भी धर्म की ज्योति जलाए रखेगी।

कार्यक्रम के अंत में स्वामी ने सभी श्रद्धालुओं से गीता को जीवन में उतारने का आह्वान किया और कहा कि जब तक इसे व्यवहार में नहीं लाया जाएगा, तब तक समाज में स्थायी शांति और समृद्धि संभव नहीं।