खूंटी, 25 मई । खूंटी जिले में लगातार हो रहे अवैध और अंधाधुंध  बालू उत्खनन से एक ओर जहां नदियों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, वहीं कई पुलों के ध्वस्त होने का भी खतरा उत्पन्न हो गया है।

अवैध बालू उत्खनन के कारण खूंटी-तोरपा मार्ग पर स्थित बनई नदी अब नाले में तब्दील हो चुकी है। नदी में सिर्फ घास ही नजर आती है। यही एक नदी है, जहां श्रद्धालु सावन और अन्य महीनों में स्नान करने कें बाद यहीं का पवित्र जल लेकर भोलेनाथ का जलाभिषेक कें लिए बाबा आम्रेश्वर धाम जाते हैं, पर अब बनई नदी में सिर्फ उसी समय पानी रहता है, जब बारिश होती है। बारिश कें कुछ घंटों के बाद ही नदी सूख जाती है। तोरपा की चेंगरझोर, छाता, कारो सहित कई अन्य छोटी नदियों के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लग सकता है।

अवैध बालू उत्खनन के कारण ध्वस्त हो चुका है कारो नदी का गिड़ुम पुल

तोरपा थाना क्षेत्र के अम्मापकना-गोविंदपुर रोड पर कारो पुल पर बना पुल कुछ वर्ष पहले ही अवैध रेत खनन कें कारण ध्वस्त हो गया था। इसका दंश आज तक लोग झेल रहे हैं। खूंटी-सिमडेगा रोड पर तोरपा थाना क्षेत्र के कारो नदी पुल पर भी अवैध बालू निकासी के करण खतरा मंडरा रहा है। कारो नदी पुल के नीचे से लगातार अवैध रूप से बालू का उत्खनन और परिवहन किया जा रहा है। यह क्षेत्र खनन के लिए पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इसके बाद भी बालू माफिया पुल के खंभे से मात्र दो-तीन सौ मीटर की दूरी पर धड़ल्ले से खनन कार्य कर रहे हैं। पुल के पूर्वी दिशा में 500 मीटर के भीतर बड़े पैमाने पर बालू निकाला जा चुका है। स्थानीय लोगों के अनुसार शाम ढलते ही अवैध उत्खनन शुरू हो जाता है, जिससे सरकार को प्रति माह लाखों की राजस्व हानि हो रही है।

पानी का फिक्स्ड डिपोजिट होता है बालू: डॉ नीतीश प्रियदर्शी

झारखंड की विभिन्न नदियों से बालू के अंधाधुंध और अवैज्ञानिक तरीके से उठाव के कारण नदियों के अस्तित्व और बढ़ते पर्यावरण असंतुलन पर गहरी चिंता जताते हुए झारखंड के जानेमाने पर्यावरणविद और रांची विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ नीतीश प्रियदर्शी ने कहा कि बालू नदियों के पानी का फिक्स्ड डिपोजिट होता है। बरसात कें पानी को बालू ही जमा रखता है। जब हम पूरे बालू को ही नदियों से निकाल लेंगे, तो उनका सूखना तय है। डॉ प्रियदर्शी ने कहा कि जब बारिश नहीं होती है, तो बालू में जमा पानी ही नदियों को रिचार्ज करता है। उन्होंने कहा कि पहले के लोग नदियों का बालू हटाकर पानी पीते थे। मवेशियों के लिए नदियों में गड्ढे बनाये जाते थे। उन्होंने कहा कि नदियों के किनारे और जहां पर नदियां मुड़ती हैं, वहां से बालू का उठाव कभी नहीं होना चाहिए। साथ ही एक निश्चित मात्रा में ही बालू का उत्खनन होना चाहिए।

डॉ नीतीश ने कहा कि हर बरसात में नदी में बालू आता है, लेकिन बालू ढंग से जमा नहीं हो पाता। उन्होंने कहा कि अवैज्ञानिक और अंधाधुंध बालू निकासी के कारण ही रांची की जुमार नदी का अतित्व खत्म हो गया।