
पश्चिम सिंहभूम, 19 मई । पश्चिमी सिंहभूम जिले के जगन्नाथपुर प्रखंड अंतर्गत बैतरणी नदी तट पर स्थित रामतीर्थ रामेश्वर मंदिर धार्मिक आस्था, संस्कृति और इतिहास का जीवंत प्रतीक है। माना जाता है कि त्रेता युग में वनवास काल के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता यहां विश्राम के लिए रुके थे। उन्होंने अपने हाथों से शिवलिंग की स्थापना की और पूजा-अर्चना की। इस स्थल को राम के पदचिन्हों से जोड़कर देखा जाता है, जिनमें एक वास्तविक और दो कृत्रिम माने जाते हैं।
यह रहस्य तब उजागर हुआ जब एक स्थानीय देवरी को स्वप्न में जानकारी मिली और टाटा स्टील नोवामुंडी की सहायता से इन्हें नदी की गहराई से निकाल कर प्रतिष्ठित किया गया। समाजसेवी निसार अहमद, जो मुस्लिम समुदाय से होते हुए भी श्रीराम को अपना आदर्श मानते हैं, ने बताया कि यहां चार प्रमुख मंदिर – रामेश्वर, शिव, जगन्नाथ और बजरंगी मंदिर मौजूद हैं।
1910 में ग्रामीणों के सहयोग से इसकी नींव रखी गई और बाद में पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, पूर्व सांसद गीता कोड़ा और ग्रामीणों के प्रयास से इसका सौंदर्यीकरण हुआ। राज्य सरकार ने हाल में इसे पर्यटन स्थल घोषित किया है। वेसर शैली पर आधारित इसकी वास्तुकला इसे विशेष बनाती है।
हर वर्ष मकर संक्रांति पर यहां विशाल मेला लगता है, जिसमें झारखंड के अलावा ओडिशा के मयूरभंज और सुंदरगढ़ से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। सोमवार को यहां विशेष पूजा होती है और मनोकामनाएं पूर्ण होने की मान्यता है।
रामतीर्थ मंदिर श्रद्धा और संस्कृति का संगम बनकर क्षेत्र में लोकप्रियता प्राप्त कर चुका है और तीर्थाटन के मानचित्र पर अपना विशिष्ट स्थान बना रहा है।