नई दिल्ली, 27 नवंबर। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी वाई चंद्रचूड़ ने शीर्ष अदालत जाने से नहीं डरने पर जोर दिया और आशा व्यक्त करते हुए रविवार को कहा कि हमारे प्रयासों से हर वर्ग, जाति एवं पंथ के नागरिक हमारी अदालत प्रणाली पर भरोसा करने के साथ उसे अपने अधिकारों को लागू करने के लिए एक निष्पक्ष तथा प्रभावी मंच के रूप में देख सकते।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने संविधान दिवस पर उच्चतम न्यायालय की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मौजूदगी में संबोधित करते हुए न्यायिक व्यवस्था को सुगम बनाने के प्रयासों का उल्लेख करते हुए नागरिकों को ये भरोसा दिलाया।

उन्होंने कहा कि आज उच्चतम न्यायालय परिसर में डॉ. बी आर अंबेडकर की प्रतिमा के अनावरण को उनके (डॉ. अंबेडकर) के प्रसिद्ध विचार का विस्तार के तौर पर देखा जाए कि ‘न्यायालय में जाने का अधिकार संविधान का हृदय और आत्मा’ है।

मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि हमारे संविधान ने हमें अपार जुनून और शक्ति लेने और सरकार की संस्थागत संरचनाओं के माध्यम से उन्हें सुव्यवस्थित करने की अनुमति दी है। इसलिए जब हम आज कहते हैं कि संविधान को अपनाने का सम्मान करते हैं तो सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, हम इस तथ्य का सम्मान करते हैं कि संविधान ‘अस्तित्व में है’ और संविधान ‘काम करता है।’

उन्होंने कहा कि पिछले सात दशकों में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ‘लोगों की अदालत’ के रूप में काम किया है। हजारों नागरिक इस विश्वास के साथ इसके दरवाजे पर पहुंचे हैं कि इस संस्था के माध्यम से उन्हें न्याय मिलेगा।

उन्होंने आगे कहा कि हमारा न्यायालय शायद दुनिया का एकमात्र न्यायालय है, जहां कोई भी नागरिक, चाहे वह कोई भी हो या जहां से आया हो, भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक मशीनरी को गति दे सकता है।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि नागरिकों को अपने निर्णयों के माध्यम से न्याय मिले, इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है कि उसकी प्रशासनिक प्रक्रियाएं भी नागरिक-केंद्रित हों, ताकि आम नागरिक न्यायालय के कामकाज के साथ जुड़ाव महसूस कर सके।

उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत यह सुनिश्चित करने के लिए सभी अदालतों में ई-सेवा केंद्र की भी शुरूआत की है ताकि कोई भी नागरिक न्यायिक प्रक्रिया में पीछे न रह जाए।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “हम अपने नागरिकों को एक साझा राष्ट्रीय प्रयास में सह-समान भागीदार के रूप में स्वीकार करते हैं।”

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि भारत का संविधान एक जीवित दस्तावेज है जो लगातार विकसित हो रहा है। यह हमारे नागरिकों की आशाओं और आकांक्षाओं को अनुकूलित करने की क्षमता रखता है।

सभा को कानून एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल, भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेक्टारामनी और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ आदिश सी अग्रवाल ने भी संबोधित किया।

शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने उच्चतम न्यायालय में संविधान दिवस समारोह में शामिल होने के लिए राष्ट्रपति मुर्मू और अन्य सम्मानित गणमान्य व्यक्तियों को धन्यवाद दिया।

इस अवसर पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय की वार्षिक रिपोर्ट की पहली प्रति मुख्य न्यायाधीश द्वारा राष्ट्रपति को भेंट की गई।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय परिसर में डॉ भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा का अनावरण के अलावा वर्चुअल जस्टिस क्लॉक, ई-एससीआर (हिंदी) और फास्टर (संस्करण 2.0) सहित भारत के सर्वोच्च न्यायालय की ई-पहल की भी शुरुआत की।

इन सेवाओं से पारदर्शिता, पहुंच और पर्यावरण-अनुकूल दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलेगा। वर्चुअल जस्टिस क्लॉक का उद्देश्य न्याय वितरण प्रणाली के बारे में जागरूकता और पारदर्शिता लाना है।

यह न्यायालयों की संस्था, निपटान और केस क्लीयरेंस दर (सीसीआर) के बारे में जानकारी प्रदान करता है और अब हिंदी में भी उपलब्ध है।

शीर्ष अदालत ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग की मदद से अपने फैसलों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने का भी फैसला लिया। ई-एससीआर (हिंदी) लॉन्च किया गया है, जो उपयोगकर्ताओं को हिंदी में निर्णय खोजने में मदद देगा। वर्तमान में पोर्टल पर 21,388 फैसलों का हिंदी में अनुवाद किया गया है, जबकि 9,276 निर्णयों का अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है।

फास्टर (इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स का तेज़ और सुरक्षित ट्रांसमिशन) एक सुरक्षित इलेक्ट्रॉनिक संचार चैनल के माध्यम से संबंधित अधिकारियों को शीर्ष अदालत के अंतरिम आदेशों, स्थगन आदेशों, जमानत आदेशों आदि को संप्रेषित करने के लिए एक डिजिटल मंच है ताकि विचाराधीन कैदियों की समय पर रिहाई सुनिश्चित की जा सके।