कोलकाता, 21 अप्रैल । कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को पश्चिम बंगाल सरकार और पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (डब्ल्यूबीएसएससी) से यह सवाल किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 25 हजार 752 शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों को रद्द करने के आदेश को लागू करने में इतनी देर क्यों की जा रही है।

यह टिप्पणी हाईकोर्ट की खंडपीठ — न्यायमूर्ति देबांग्सु बसाक और न्यायमूर्ति शब्बार रशीदी — द्वारा उस अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई, जिसमें राज्य सरकार और डब्ल्यूबीएसएससी पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को लागू न करने का आरोप लगाया गया है। कोर्ट ने सरकार और आयोग को निर्देश दिया कि वे एक दिन के भीतर इस देरी पर स्पष्टीकरण दें।

अब इस मामले की अगली सुनवाई 23 अप्रैल को होगी, जिस दिन राज्य सरकार और आयोग को अपना जवाब प्रस्तुत करना होगा।

उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष यही खंडपीठ 2016 की पूरी नियुक्ति सूची को रद्द कर चुकी है, जिसमें 25 हजार 753 शिक्षक और शिक्षणेत्तर पद शामिल थे। उस आदेश को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाल ही में, मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए माना कि नियुक्तियों की पूरी सूची को रद्द करना आवश्यक था, क्योंकि सरकार और आयोग “दागी” और “ईमानदार” उम्मीदवारों के बीच अंतर नहीं कर सके।

इसके बाद हाईकोर्ट में फिर अवमानना याचिका दायर की गई, जिसमें यह आरोप लगाया गया कि सरकार और आयोग ने अब तक उन लोगों की नौकरी खत्म करने की कोई प्रक्रिया शुरू नहीं की है, जिन्हें आयोग खुद पहले ही “दागी” घोषित कर चुका है।

सोमवार को सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने यह भी कहा कि यदि “दागी” उम्मीदवारों को वेतन मिलता रहा, तो यह और भी गंभीर समस्या खड़ी करेगा। साथ ही, कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) अब तक उन “दागी” उम्मीदवारों से पूछताछ क्यों नहीं कर रही है।

कोर्ट ने यह निर्देश भी दिया कि सीबीआई यह पता लगाए कि किन लोगों को इन पदों के बदले पैसे दिए गए थे। अब बुधवार को सीबीआई के वकील को भी इस मामले में अपना पक्ष कोर्ट के सामने रखना होगा।