
प्रह्लाद राय गोयनका सहित अनेक प्रबुद्धजनों ने रखे विचार
ओ.पी. शाह की पुस्तक इन पर्सूट ऑफ पीस का लोकार्पण
कोलकाता, 14 अप्रैल। भारत और पाकिस्तान के संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में दोनों देशों के नागरिकों के बीच संवाद, सांस्कृतिक सहभागिता और आपसी समझ को बढ़ावा देने पर ज़ोर देते हुए रविवार को भारतीय भाषा परिषद में एक महत्वपूर्ण परिचर्चा आयोजित की गई। ‘सेंटर फॉर पीस एंड प्रोग्रेस’ की पहल पर आयोजित इस कार्यक्रम में भारत व पाकिस्तान के कई प्रबुद्धजनों ने भाग लिया। इस दौरान वरिष्ठ चिंतक ओ.पी. शाह की पुस्तक In Pursuit of Peace: Improving Indo-Pak Relations का लोकार्पण भी किया गया।
परिचर्चा में पूर्व सांसद व प्रसार भारती के भूतपूर्व प्रमुख जवाहर (जहर) सरकार, पूर्व ब्रिगेडियर एन.एस. मुखर्जी, संस्था के समन्वयक प्रह्लाद राय गोयनका तथा पाकिस्तान के कुछ ऑनलाइन प्रतिभागी शामिल रहे। वक्ताओं ने मत रखा कि आतंकवाद को दरकिनार करते हुए मानवीय और सांस्कृतिक संबंधों के माध्यम से दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की जानी चाहिए।
संस्था के समन्वयक प्रह्लाद राय गोयनका ने परिचर्चा को संबोधित करते हुए कहा, “भारत और पाकिस्तान की जनता के दिलों में जो सहज लगाव है, वह किसी भी राजनीतिक तनाव से कहीं अधिक स्थायी है। हमें अपनी नई पीढ़ी को कटुता की विरासत नहीं, संवाद और सौहार्द की संस्कृति सौंपनी चाहिए। रिश्तों को सुधारने की शुरुआत केवल सरकारें नहीं, आम लोग भी कर सकते हैं—अपने विचारों, संस्कृति और सद्भाव के आदान-प्रदान से।”
इस अवसर पर ओ.पी. शाह ने कहा कि यदि दोनों देश पुराने विवादों को पीछे छोड़कर भविष्य की ओर देखें तो शांति की दिशा में ठोस कदम संभव हैं। उन्होंने क्रिकेट, संगीत, साहित्य जैसे साझा तत्वों को पुल की तरह उपयोग करने का सुझाव दिया।
सीमा पार से जुड़े पाकिस्तानी प्रतिभागियों ने भी अपने विचार साझा किए और कहा कि अब समय आ गया है जब दोनों देश एक-दूसरे पर दोषारोपण की बजाय नई इबारत लिखें। उन्होंने आपसी संपर्क, वीजा सहजता और व्यावसायिक सहयोग जैसे क्षेत्रों में पहल करने पर बल दिया।
परिचर्चा में यह महसूस किया गया कि शांति और प्रगति की राह आपसी संवाद, सांस्कृतिक विनिमय और नागरिक सहभागिता से ही निकलेगी। कार्यक्रम ने यह संदेश दिया कि राजनीति से इतर भी शांति की संभावनाएं पूरी तरह जीवित हैं—ज़रूरत है उन्हें अवसर देने की।