भारत के सबसे खूबसूरत राज्यों में से एक अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन की ओर से किए जा रहे  सारे दावे ऐतिहासिक, भौगोलिक और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के आधार पर बेबुनियाद हैं। अरुणाचल सदियों से भारतीय संस्कृति से जुड़ा रहा है। ऐतिहासिक तथ्यों देखा जाए तो अरुणाचल प्रदेश का भारत से संबंध हजारों साल पुराना है।

प्राचीन भारतीय ग्रंथों में उल्लेख इसका उल्लेख मिलता है। अरुणाचल प्रदेश का उल्लेख महाभारत और रामायण में है। माना जाता है कि भगवान परशुराम ने यहां तपस्या की थी और यह स्थान भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है। तवांग मठ का ऐतिहासिक महत्व भी रहा है। तवांग मठ, जो दुनिया के सबसे बड़े बौद्ध मठों में से एक है, भारत से सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से जुड़ा है। यह दलाई लामा के भारत आगमन से पहले ही बौद्ध धर्म के पवित्र केंद्रों में गिना जाता था।

अहोम साम्राज्य और भारतीय प्रशासन भी एतिहासिक तथ्य के रूप में उभर कर आता है। मध्यकाल में अरुणाचल प्रदेश अहोम साम्राज्य के प्रभाव में था, जो भारत का प्रमुख शक्ति केंद्र था। अहोम शासकों ने इस क्षेत्र को कभी चीन के अधीन नहीं माना।

ब्रिटिश शासन में दौरान भी यही वास्तविकता थी। 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश शासन के दौरान अरुणाचल प्रदेश को भारत के पूर्वी क्षेत्र का हिस्सा माना गया। साल 1914 में ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच हुए शिमला समझौते में मैकमोहन रेखा को भारत और तिब्बत की सीमा के रूप में मान्यता दी गई थी।

भौगोलिक तर्कों को अगर देखा जाय तो अरुणाचल, भारत की प्राकृतिक सीमा में आता है। 1914 में तय की गई मैकमोहन रेखा भारत और तिब्बत की सीमा को स्पष्ट रूप से निर्धारित करती है। चीन कभी इस समझौते का हिस्सा नहीं था इसलिए उसका दावा पूरी तरह से बेबुनियाद है। अरुणाचल की प्राकृतिक स्थिति पर नजर डालने पर भी यही स्थिति सामने आती है। अरुणाचल प्रदेश की भौगोलिक स्थिति और भारत की भौगोलिक संरचना से जुड़ाव इसे भारत का अभिन्न हिस्सा साबित करते हैं।

खास बात यह है कि चीन इस मुद्दे पर एक लंबे कालखंड तक चुप्पी साधे रहा। 1962 के भारत-चीन युद्ध से पहले चीन ने कभी अरुणाचल प्रदेश पर दावा नहीं किया। यह दिखाता है कि चीन का दावा पूरी तरह से राजनीतिक है, न कि ऐतिहासिक या भौगोलिक आधार पर सही। लिहाजा, चीन का दावा कानूनी तर्कों पर भी नहीं ठहरता। चीन का दावा अंतरराष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ है। चीन का यह दावा संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय संधियों के खिलाफ है।

यह भारत की संसद द्वारा स्वीकृत राज्य है। 1987 में अरुणाचल प्रदेश को भारतीय संसद द्वारा आधिकारिक रूप से पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। यह दर्शाता है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का संवैधानिक हिस्सा है। भारत अरुणाचल प्रदेश पर प्रशासनिक नियंत्रण रखता है, वहां लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार है और वहां की जनता स्वयं को भारतीय मानती है।

चीन की दोहरी नीति है।चीन, ताइवान और तिब्बत पर ऐतिहासिक आधार पर दावा करता है लेकिन जब भारत अपने ऐतिहासिक तर्क प्रस्तुत करता है, तो वह उन्हें नजरअंदाज करता है। चीन ने तिब्बत का जबरन विलय कराया। चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्जा किया लेकिन भारत ने कभी भी तिब्बत की स्वतंत्रता को चुनौती नहीं दी। अब चीन अरुणाचल प्रदेश पर दावा करके अपनी विस्तारवादी नीति को आगे बढ़ा रहा है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस विवाद को लेकर स्पष्ट किया है कि “अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग था, है और रहेगा। चीन के झूठे दावों से यह सच्चाई नहीं बदलेगी।

भारत में सभी राजनीतिक दल चीन के इस दावे का विरोध कर रहे हैं। संसद में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई और सभी सांसदों ने चीन की विस्तारवादी नीति की आलोचना की। सीमा पर भारत की कड़ी चौकसी है। भारतीय सेना अरुणाचल प्रदेश में पूरी तरह सतर्क है और किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार है। भारत सरकार ने हाल के वर्षों में सड़कों, पुलों और सैन्य सुविधाओं का तेजी से विस्तार किया है। भारत पहले ही चीन की घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम कर चुका है, और यह जता दिया है कि भविष्य में भी ऐसी किसी हरकत को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

भारत ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक मंचों पर चीन के झूठे दावों का विरोध किया है। भारत ने क्वाड (Quad) और अन्य सुरक्षा संगठनों में अपनी भूमिका मजबूत की है, जिससे चीन पर रणनीतिक दबाव बढ़ेगा। भारत ने चीनी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाकर और आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा देकर चीन को कड़ा आर्थिक संदेश दिया है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि अरुणाचल प्रदेश पर कोई समझौता नहीं होगा।