नई दिल्ली, 25 फरवरी। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में चार पैरों वाले (मेडिकल टर्म में अपूर्ण परजीवी) बच्चे का सफल ऑपरेशन किया गया। यह विसंगति 10 लाख जन्म पर एक बच्चे में देखी जाती है। पिछले 17 वर्षों से कई दिक्कतों का समाना कर रहे उत्तर प्रदेश का रहने वाला किशोर अब स्वस्थ्य है और उसे एम्स से डिस्चार्ज कर दिया गया है। यह जटिल सर्जरी करने वाली डॉक्टरों के टीम ने बताया कि एम्स में यह ऐसा पहला मामला है। इससे पहले कम उम्र में ही इस तरह की विसंगतियों का इलाज किया जाता रहा है।

एम्स के चिकित्सक डॉ वीके बंसल ने मंगलवार को पत्रकार वार्ता में बताया कि 17 वर्षीय एक लड़का जनवरी के अंतिम सप्ताह में अपने पेट से पूरी तरह विकसित निचले अंग के साथ हमारे क्लिनिक में आया था। जन्म के बाद से ही वह इस अतिरिक्त अंग के साथ रहता था। जैसे-जैसे लड़का बड़ा हो रहा था उसके परजीवी अंग में स्पर्श, दर्द और तापमान महसूस होता था। उसे कभी-कभी अपने पेट और पार्श्व भाग में हल्का दर्द महसूस होता था, लेकिन उनकी आंत और मूत्राशय सामान्य रूप से काम करते थे, नियमित रूप से खाते थे और उन्हें कोई अन्य बड़ी स्वास्थ्य समस्या नहीं थी लेकिन लड़के को सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इसके कारण उसने स्कूल छोड़ दिया और डिप्रेशन में चला गया। बच्चे के अभिभावक को स्थानीय डॉक्टरों ने एम्स लाने की सलाह दी। क्योंकि बच्चा स्कूली शिक्षा में बहुत संघर्ष कर रहा था। लोगों के ताने से बच्चे ने 8वीं कक्षा में पढ़ाई छोड़ दी, जिसके बाद से वह स्कूल वापस नहीं लौटा।

एनेस्थिसिया विभाग के चिकित्सक डॉ. राकेश कुमार ने बताया कि हमने परजीवी अंग को रक्त की आपूर्ति का आकलन करने के लिए एक सीटी एंजियोग्राफी की और पाया कि यह आंतरिक स्तन धमनी की एक शाखा द्वारा आपूर्ति की गई थी, जो आमतौर पर छाती की दीवार को आपूर्ति करती है। इससे स्थिति और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गयी। सीटी स्कैन के दौरान उनके पेट में एक बड़ा सिस्टिक मास भी पाया गया। पूरी तैयारी और चर्चा के वाद उनकी सर्जरी 8 फरवरी को निर्धारित की गई।

सर्जरी जटिल थी और इसमें दो मुख्य भाग शामिल थे। पहला भाग परजीवी अंग को हटाना। चिकित्सकों ने उस अंग के आधार के चारों ओर एक गोलाकार चीरा लगाया जहां वह उसकी छाती से जुड़ा हुआ था। उन्होंने सावधानीपूर्वक त्वचा और ऊतकों को काटा, अंग की आपूर्ति करने वाली रक्त वाहिकाओं की पहचान की और उन्हें बांध दिया और हड्डी के जुड़ाव को अलग कर दिया। अंग पूरी तरह से हटा दिया गया था।

मेडिकल की भाषा में समझें तो गर्भावस्था में कभी-कभी एक जुड़वां पूरी तरह से विकसित नहीं होता है, जिसके कारण इसे असममित या परजीवी जुड़वां कहा जाता है। इन मामलों में एक जुड़वां (ऑटोसाइट) अधिक विकसित होता है, जबकि दूसरा (परजीवी) जीवित रहने के लिए ऑटोसाइट पर निर्भर करता है। ये मामले बेहद दुर्लभ हैं और उनके विकसित होने के तरीके व्यापक रूप से भिन्न हो सकते हैं। विश्व चिकित्सा साहित्य में अब तक ऐसे केवल 40 मामले ही सामने आए हैं।बच्चे की सर्जरी करने वाले सर्जन की टीम का नेतृत्व डॉ. असुरी कृष्णा ने किया। इनके साथ विभिन्न विभाग के सर्जरी विशेषज्ञों में डॉ. बंसल, डॉ सुशांत सोरेन, डॉ ब्रिजेश सिंह, डॉ. अभिनव, डॉ. जेमीन शामिल रहे। इनके साथ बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी से डॉ. मनीष सिंघल, डॉ. शशांक चौहान, एनेस्थिसिया विभाग से डॉ गंगा प्रसाद और डॉ राकेश कुमार, रेडियोलॉजी विभाग से डॉ अतिन कुमार और डॉ अंकिता अग्रवाल शामिल रहे।