कोलकाता, 31 दिसंबर । पश्चिम बंगाल के जूट उद्योग ने 2024 में गंभीर चुनौतियों का सामना किया है। खाद्यान्न और चीनी की पैकिंग के लिए जूट बैग की मांग में लगभग 30 प्रतिशत की कमी आई, जिसके कारण मिलों में काम के घंटे घटाने पड़े। इसके साथ ही तैयार उत्पाद और कच्चे जूट की कीमतों में गिरावट ने मिल मालिकों और किसानों दोनों को मुश्किलों में डाल दिया। यह समस्या नए साल 2025 में भी रहने का आशंका है।

इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन (आईजेएमए) के अनुसार, जूट उत्पादों के मूल्य निर्धारण के लिए पुरानी और अप्रभावी प्रणाली अब भी लागू है। सरकार ने नई मूल्य निर्धारण प्रणाली लाने का निर्णय लिया है, लेकिन इसके विवरण अभी तक स्पष्ट नहीं हुए हैं। मिल मालिकों का कहना है कि यह पुरानी प्रणाली लाभप्रदता में कमी ला रही है, जिससे उद्योग पर संकट बढ़ रहा है।

जूट बैग की मांग में कमी

आईजेएमए ने बताया कि 2024 में जूट बैग की मांग में 30 प्रतिशत तक की कमी देखी गई। इसका मुख्य कारण चीनी उद्योग द्वारा जूट बैग की कम खरीदारी को बताया गया। इस स्थिति ने मिलों को परिचालन समय कम करने और शिफ्ट्स घटाने पर मजबूर हो गए, जिससे कई श्रमिकों की नौकरियां चली गईं।

किसानों पर पड़ा गहरा असर

जूट मिलों में उत्पादन में कमी का असर पश्चिम बंगाल के जूट किसानों पर भी पड़ा। जूट, जिसे “सुनहरा रेशा” कहा जाता है, की कीमतों में गिरावट से किसानों की आय प्रभावित हुई।

आईजेएमए के उपाध्यक्ष ऋषभ काजरिया ने उद्योग की चुनौतियों पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जेम) पर रिवर्स नीलामी की प्रक्रिया मिलों को जूट आयुक्त द्वारा निर्धारित न्यूनतम कीमत से कम पर बोली लगाने के लिए मजबूर कर रही है। यह मिलों की वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा है और श्रमिकों को मिलने वाले भुगतान को भी प्रभावित कर रहा है।

काजरिया ने यह भी बताया कि 1987 के जूट पैकेजिंग अधिनियम के तहत चीनी उद्योग द्वारा 20 प्रतिशत जूट पैकेजिंग के अनिवार्य नियम का पालन नहीं किया जा रहा है। इससे जूट बैग की मांग और अधिक प्रभावित हुई है।

जूट आयुक्त का पक्ष

जूट आयुक्त मलॉय चंद्र चक्रवर्ती ने इस वर्ष को “सामान्य” बताया और कहा कि 2024-25 के सीजन में जूट उत्पादन 91 लाख गांठों से घटकर 73 लाख गांठ हो गया। उन्होंने इसे कीमतों को स्थिर रखने में मददगार बताया।

चक्रवर्ती ने सरकारी मांग में कमी के दावे को खारिज करते हुए कहा कि सरकार ने 30-32 लाख गांठों की मांग रखी, जो पिछले वर्षों के अनुरूप है। उद्योग का हंगामा केवल निजी मांग में कमी के कारण है। सरकार ने इस साल कच्चे जूट का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर पांच हजार 335 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 285 रुपये अधिक है। जूट निगम ने किसानों की सुरक्षा के लिए रिकॉर्ड खरीदारी का दावा किया।

आशावादी भविष्य

चक्रवर्ती ने कहा कि 2025-26 के सीजन में रबी फसल के बंपर उत्पादन के कारण जूट बैग की मांग बढ़ने की उम्मीद है। वहीं, आईजेएमए ने श्रमिकों के लिए बेहतर आवास सुविधाएं, महिलाओं के लिए नाइट शिफ्ट की व्यवस्था और बेहतर खरीद प्रक्रिया जैसे मुद्दों पर नीतिगत हस्तक्षेप की मांग की है।