कोलकाता, 28 दिसंबर। पश्चिम बंगाल की राजनीति में 2024 साल तृणमूल कांग्रेस के लिए एक ओर चुनावी सफलताओं का तो दूसरी ओर विवादों और आंतरिक संघर्षों का साल रहा। वहीं पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के लिए यह साल निराशाजनक रहा। लोकसभा चुनाव में पार्टी की सीटों की संख्या 18 से घटकर 12 रह गई। मुख्यमंत्री और तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी के नेतृत्व में पार्टी ने लोकसभा चुनाव और बाद के उपचुनावों में शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य में अपनी पकड़ को और मजबूत किया।
लोकसभा चुनाव में तृणमूल का जलवा
तृणमूल ने 2024 के लोकसभा चुनावों में राज्य की 42 में से 29 सीटों पर कब्जा जमाया, जो 2019 के 22 सीटों से सात अधिक है। इसके विपरीत, भाजपा की सीटें 2019 के 18 से घटकर 12 रह गईं। यह प्रदर्शन न केवल ममता बनर्जी की राजनीतिक स्थिति को मजबूती दे गया, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में उनका कद और बड़ा हो गया।
इंडी गठबंधन, जो भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती देने के लिए बनाया गया है, में तृणमूल की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार ने तृणमूल की दावेदारी को और मजबूत किया।
विवाद और संकट के बीच नेतृत्व की परीक्षा
हालांकि, तृणमूल के इस राजनीतिक प्रदर्शन पर कई विवादों और घटनाओं का साया रहा। जनवरी में उत्तर 24 परगना जिले के संदेशखाली में ईडी अधिकारियों पर हमले ने राज्य की राजनीति को गर्मा दिया। इस घटना में स्थानीय तृणमूल नेता शाहजहां शेख का नाम सामने आया, जिन पर जमीन कब्जाने और महिलाओं के उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगे।
तृणमूल ने शेख को पार्टी से निलंबित कर दिया, और बाद में उनकी गिरफ्तारी हुई। इसके बावजूद, संदेशखाली के तहत आने वाली बशीरहाट सीट पर तृणमूल ने भाजपा उम्मीदवार रेखा पात्रा को हराते हुए बड़ी जीत दर्ज की।
आर.जी. कर अस्पताल में डॉक्टर की हत्या
अगस्त में आर.जी. कर अस्पताल में एक युवा महिला डॉक्टर की बलात्कार और हत्या की घटना ने राज्य में व्यापक जनाक्रोश को जन्म दिया। डॉक्टरों ने 50 दिनों तक भूख हड़ताल की, जो अक्टूबर में ममता बनर्जी के साथ उनकी बैठक के बाद समाप्त हुई। इस घटना ने स्वास्थ्य विभाग, जिसकी जिम्मेदारी भी ममता बनर्जी के पास है।
आंतरिक कलह और अनुशासनात्मक कदम
तृणमूल को अपने भीतर के विवादों से भी जूझना पड़ा। वरिष्ठ नेताओं और युवा कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष को देखते हुए ममता बनर्जी ने पार्टी में संतुलन स्थापित करने के लिए कई अनुशासनात्मक समितियां बनाईं और अपने भतीजे और पार्टी महासचिव अभिषेक बनर्जी को अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपी।
भाजपा को लगातार मिली मायूसी
2024 का साल भाजपा के लिए निराशाजनक रहा। केंद्रीय नेतृत्व पर अत्यधिक निर्भरता और नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) जैसे मुद्दों पर विवादों के कारण पार्टी ने अपनी लोकप्रियता खो दी। आंतरिक विद्रोह और पार्टी कैडर में असंतोष ने स्थिति को और खराब कर दिया।
भाजपा प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा कि 2025 में हम वापसी की उम्मीद करते हैं। भाजपा तृणमूल के कुशासन के खिलाफ लड़ाई जारी रखेगी।
वामपंथ और कांग्रेस का कमजोर प्रदर्शन
कांग्रेस और वामपंथी दल पश्चिम बंगाल की राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में विफल रहे। कांग्रेस तो हाल के उपचुनावों में सभी छह सीटों पर अपनी जमानत तक नहीं बचा सकी।
उपचुनावों में तृणमूल की धमाकेदार जीत
तृणमूल ने जुलाई और नवंबर में हुए उपचुनावों में रायगंज, बगदा और मदारीहाट जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर कब्जा जमाते हुए विधानसभा में अपनी संख्या 217 तक पहुंचा दी।
कुल मिलाकर 2024 ममता बनर्जी और तृणमूल के लिए विजय और चुनौतियों का साल रहा। जहां तृणमूल ने चुनावों में अपना दबदबा बनाए रखा, वहीं विवाद और आंतरिक कलह ने पार्टी नेतृत्व की कठिन परीक्षा ली। अब देखना यह है कि 2025 में ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में कितनी बड़ी भूमिका निभा पाएंगी।