कोलकाता, 20 दिसंबर । पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों  के लिए फर्जी भारतीय पासपोर्ट तैयार करने वाले रैकेट की जांच कर रही एजेंसियां अब इस समस्या की जड़ में शामिल सार्वजनिक वितरण प्रणाली  के कुछ डीलरों की भूमिका को खंगालने में जुटी हैं। राज्य पुलिस के एक अधिकारी के अनुसार, प्रारंभिक जांच में यह पता चला है कि इन फर्जी पासपोर्ट तैयार करने वाले रैकेट का आधार पीडीएस डीलरों का एक विशेष वर्ग है।

जांच से जुड़े अधिकारियों ने बताया है कि जब कोई अवैध बांग्लादेशी प्रवासी भारत में प्रवेश करता है और इन रैकेट के एजेंटों से संपर्क करता है, तो उसके लिए फर्जी राशन कार्ड बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है। ये एजेंट स्थानीय पीडीएस डीलरों से उन राशन कार्डों की सूची लेते हैं, जो कार्डधारक की मृत्यु या लंबे समय तक राशन न लेने के कारण निष्क्रिय हो चुके होते हैं। इसके बाद, किसी एक निष्क्रिय कार्ड को चुनकर उसके खो जाने की सामान्य डायरी (जीडी) दर्ज करायी जाती है।

उस जीडी के आधार पर, कार्ड को दोबारा सक्रिय किया जाता है और लाभार्थी के रूप में अवैध प्रवासी का नाम दर्ज किया जाता है। इसके बाद, फर्जी दस्तावेजों की श्रृंखला शुरू होती है, जिसमें पहले मतदाता पहचान पत्र (ईपीआईसी), फिर पैन और आधार कार्ड और अंततः फर्जी पासपोर्ट तैयार किया जाता है।

रैकेट का स्वरूप

अधिकारी ने बताया कि इस रैकेट का आधार पीडीएस डीलरों की संलिप्तता है, जबकि इसके शीर्ष स्तर पर पोस्ट ऑफिस पासपोर्ट सेवा केंद्र (पीओपीएसके) के कुछ कर्मचारियों की भूमिका होती है।

अब तक पश्चिम बंगाल में ऐसे फर्जी पासपोर्ट रैकेट के संबंध में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें दीपंकर दास और दीपक मंडल नामक दो व्यक्ति पीओपीएसके के संविदा कर्मचारी हैं। जांच एजेंसियां इन रैकेट के पूरे नेटवर्क और इसमें शामिल सभी लोगों की भूमिका का पता लगाने की कोशिश कर रही हैं।