नयी दिल्ली, 2 नवंबर। केरल सरकार ने लंबित विधेयकों को मंजूरी देने में राज्यपाल की ओर से अत्यधिक देरी किए जाने को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है।
शीर्ष अदालत के समक्ष राज्य सरकार ने एक रिट याचिका के जरिए दावा किया है कि विधान सभा द्वारा पारित विधेयकों को निपटाने में राज्यपाल द्वारा अनिश्चितकालीन देरी किए जाने ने राज्य के लोगों को कल्याणकारी कानूनों के लाभों से वंचित कर दिया। यह देरी जनता के साथ गंभीर अन्याय है।
याचिका में कहा गया है कि विधेयकों को लंबे एवं अनिश्चित काल तक लंबित रखने का राज्यपाल का आचरण भी स्पष्ट रूप से मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। इसके अलावा यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत केरल राज्य के लोगों को कल्याणकारी कानून के लाभों से वंचित कर उनके अधिकारों को भी पराजित करता है।
याचिका में आगे कहा गया है कि अत्यधिक देरी संविधान द्वारा परिकल्पित संसदीय लोकतंत्र की योजना के विपरीत होने के अलावा लोगों की सामूहिक इच्छा को एकतरफा तरीके से दरकिनार करने के समान है।
सरकार ने याचिका में दावा किया है कि राज्य विधानमंडल द्वारा पारित और संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत उनकी सहमति के लिए राज्यपाल को प्रस्तुत किए गए आठ विधेयक लंबित थे। इनमें से तीन विधेयक दो साल से अधिक समय से, जबकि तीन पूरे एक वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं।
सरकार ने दावा किया कि राज्यपाल के आचरण से कानून के शासन और लोकतांत्रिक सुशासन सहित हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों और बुनियादी आधारों को बर्बाद करने का खतरा है। इसके साथ ही (यह व्यवहार) राज्य के लोगों के कल्याणकारी उपायों के अधिकारों को भी नुकसान पहुंचता है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि ऐसा प्रतीत होता है कि राज्यपाल का विचार है कि विधेयकों को अनुमति देना या अन्यथा उनसे निपटना उनके पूर्ण विवेक पर सौंपा गया मामला है और जब भी वे चाहें निर्णय लें।
याचिका में कहा गया, ”यह स्थिति संविधान का पूर्ण विध्वंस है।”
केरल सरकार की ओर से यह रिट याचिका दायर करना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विपक्ष शासित पंजाब और तमिलनाडु सरकारों द्वारा दायर की गई ऐसी ही याचिकाओं के कुछ दिनों के भीतर दायर कई है।